भारत देश मौसम की दृष्टि से समशीतोष्ण माना जाता है। यहां गमी, सर्दी और बरसात के मौसम
चार चार माह से समान अवधि में बंटे देख जाते हैं।
यही कारण है कि भारतीय हर मौसम का सामना करने में सक्षम माने जाते हैं। यह
अलग बात है कि समय के साथ अनियोजित बसाहट,
नियंत्रित विकास तथा अनियमित प्रबंध ने गांव ही नहीं
शहरों को भी प्राकृतिक आपदाओं का उद्गम स्थल बना दिया है।
प्राचीन काल में मनुष्य नदियों के किनारों के निकट निवास स्थान का चयन इसलिये करते थे क्योंकि वह
इस सत्य को जानते थे कि जल ही जीवन है। अब
लोग स्थान चयन धन की नदी के निकट करते हैं क्योंकि वह मानते हैं कि धन ही जीवन है।
यह धन की नदियां शहरों में ही बहती हैं यह अलग बात है कि यह प्राकृतिक नदियों और
नालों की जलधारा को बाधित करने वाली होती है। थोड़ी बरसात में ही बड़े शहरों की
सड़कें मल नदी में परिवर्तित होकर कहर बरपाती हैं क्योंकि विकास की सड़कें कमीशन के
सहारे जमी होने के कारण बह जाती हैं। विकास के लोभ में आम और खास दोनों ही प्रकार
के इंसान धन ही जीवन के सिद्धांत पर चल रहे हैं इसलिये बड़े शहरों में बरसाती संकट
के लिये सभी जिम्मेदार हैं।
स्थिति यह है कि नदी के अनेंक किनारे जो बरसात के समय उसका भाग दिखते थे
वहां यह जानते हुए भी मकान और कारखाने बनाये गये कि वर्षा होने पर बाढ़ आयेगी। शहरी
नालों का गंदा पानी पवित्र कहीं जाने वाली नदियों की तरफ मोड़ा गया। धर्मग्रथों में कहीं नहीं लिखा गया कि शव जल
में बहाये जायें पर स्वर्ग की प्राप्ति के लिये यह भी किया जा रहा है। प्लास्टिक
जिसे अग्नि और जल नष्ट नहंी कर सकते उसे जल में प्रवाहित करने में धार्मिक आस्था
की आड़ ली जा रही है। सब एक दूसरे से कहते हैं कि सुधर जाओ पर जब अपना समय आता है
तो सब इन नदियों को नाला बनाने का काम करते हैं।
यह सब अध्यात्मिक ज्ञान के अभाव का परिणाम है। हमारे यहां धर्म के नाम पर अनेक कार्यक्र्रम
होत हैं पर पेशेवर वक्ता पुरानी कहानियों से मनोरंजन कर लोगों को बहला कर गुरु की
पदवी धारण कर लेते हैं। कोई लोगों को यह संदेश नहीं देता कि हमें जीवन स्वच्छ रखने
के लिये वातावरण शुद्ध बनाये रखना आवश्यक है। जिन नदियों पर वह कथायें सुनाते हैं
उन्हें शुद्ध रखने का रोना तो रोते हैं पर लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझाने की बात
नहीं करते। हमारा मानना है कि किसी दूसरे पर जिम्मेदारी डालने से पहले आम तथा खास
लोग व्यक्तिगत रूप से गंदगी न करने का प्रण ले-ऐसा हमारा मानना है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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