समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Monday, July 13, 2015

अध्यात्मिक ज्ञान से ही प्राकृतिक विपदा से बचाव संभव-हिन्दी चिंत्तन लेख(ahdyatmik gyan se hi prakritik vipada se bachav sambhav-hindi thought article)

           भारत देश मौसम की दृष्टि से समशीतोष्ण माना जाता है। यहां गमी, सर्दी और बरसात के मौसम चार चार माह से समान अवधि में बंटे देख जाते हैं।  यही कारण है कि भारतीय हर मौसम का सामना करने में सक्षम माने जाते हैं। यह अलग बात है कि समय के साथ अनियोजित बसाहट, नियंत्रित विकास तथा अनियमित प्रबंध ने गांव ही नहीं शहरों को भी प्राकृतिक आपदाओं का उद्गम स्थल बना दिया है।
                              प्राचीन काल में मनुष्य नदियों के किनारों के निकट  निवास स्थान का चयन इसलिये करते थे क्योंकि वह इस सत्य को जानते थे कि जल ही जीवन है।  अब लोग स्थान चयन धन की नदी के निकट करते हैं क्योंकि वह मानते हैं कि धन ही जीवन है। यह धन की नदियां शहरों में ही बहती हैं यह अलग बात है कि यह प्राकृतिक नदियों और नालों की जलधारा को बाधित करने वाली होती है। थोड़ी बरसात में ही बड़े शहरों की सड़कें मल नदी में परिवर्तित होकर कहर बरपाती हैं क्योंकि विकास की सड़कें कमीशन के सहारे जमी होने के कारण बह जाती हैं। विकास के लोभ में आम और खास दोनों ही प्रकार के इंसान धन ही जीवन के सिद्धांत पर चल रहे हैं इसलिये बड़े शहरों में बरसाती संकट के लिये सभी जिम्मेदार हैं।
                              स्थिति यह है कि नदी के अनेंक किनारे जो बरसात के समय उसका भाग दिखते थे वहां यह जानते हुए भी मकान और कारखाने बनाये गये कि वर्षा होने पर बाढ़ आयेगी। शहरी नालों का गंदा पानी पवित्र कहीं जाने वाली नदियों की तरफ मोड़ा गया।  धर्मग्रथों में कहीं नहीं लिखा गया कि शव जल में बहाये जायें पर स्वर्ग की प्राप्ति के लिये यह भी किया जा रहा है। प्लास्टिक जिसे अग्नि और जल नष्ट नहंी कर सकते उसे जल में प्रवाहित करने में धार्मिक आस्था की आड़ ली जा रही है। सब एक दूसरे से कहते हैं कि सुधर जाओ पर जब अपना समय आता है तो सब इन नदियों को नाला बनाने का काम करते हैं।
                              यह सब अध्यात्मिक ज्ञान के अभाव का परिणाम है।  हमारे यहां धर्म के नाम पर अनेक कार्यक्र्रम होत हैं पर पेशेवर वक्ता पुरानी कहानियों से मनोरंजन कर लोगों को बहला कर गुरु की पदवी धारण कर लेते हैं। कोई लोगों को यह संदेश नहीं देता कि हमें जीवन स्वच्छ रखने के लिये वातावरण शुद्ध बनाये रखना आवश्यक है। जिन नदियों पर वह कथायें सुनाते हैं उन्हें शुद्ध रखने का रोना तो रोते हैं पर लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझाने की बात नहीं करते। हमारा मानना है कि किसी दूसरे पर जिम्मेदारी डालने से पहले आम तथा खास लोग व्यक्तिगत रूप से गंदगी न करने का प्रण ले-ऐसा हमारा मानना है।
----------------------
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

No comments:

विशिष्ट पत्रिकायें