25 दिसम्बर 2014 श्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म दिन सुशासन
दिवस में रूप में मनाया जाता है। हमारे देश में आज राज्य व्यवस्थाओं में राम
राज्य की कल्पना के साकार प्रकट होने की अपेक्षा की जाती है। यह तो पता नहीं कि
हमारे देश के धाार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा
आर्थिक विषयों के विशेषज्ञ सुशासन के स्वरूप और महत्व से क्या आशय लेते हैं, पर हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार शासन की व्यवस्था ही सतयुग और कलियुग
की स्थिति परिभाषित करती है। हमारे महान विद्वान चाणक्य जी का कहना है कि
राज्य के अच्छे बुरे प्रबंध से ही प्रजा
में सतयुग और कलियुग का भाव निर्मित होता है। हमारा देश बौद्धिक रूप से तत्वज्ञान
के भंडार की वजह से विश्व का अध्यात्मिक गुरु माना जाता है और उसके अनुसार भी
मनुष्य की दैनिक आवश्यकतायें भी कम महत्वपूर्ण नहीं होती इसलिये राजधर्म में स्थित
लोगोें यह दायित्व होता है कि वह प्रजा के
प्रति हमेशा सजग रहें। हमारे यहां धर्म से
आशय अच्छे व्यवहार तथा अपने कर्म का निर्वाह करने से ही है।
हमारे यहां भगवान विष्णु के अनेक अवतार माने जाते हैं उनमें भगवान श्रीराम
और श्रीकृष्ण की चर्चा सबसे अधिक होती है।
इसका कारण यह है कि उन्होंने न केवल अध्यात्मिक रूप से समाज को संदेश दिया
वरन् सांसरिक विषयों मेें भी नैतिक सिद्धांतों से कार्य करने की प्रेरणा दी। दोनों ने ही राजधर्म का निर्वाह किया। भगवान
विष्णु भी पालनहार होने की वजह से भारतीय समाज में सक्रिय इष्ट का सम्मान पाते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि हमारा अध्यात्मिक
दर्शन केवल भगवान की आराधना के लिये ही प्रेरित नहीं करता वरन् सांसरिक विषयों में
भी सिद्धांतों के पालन की बात कहता है।
हमारे यहां कर्म ही धर्म माना जाता है। यही कारण है कि राज धर्म का महत्व
अत्यंत बढ़ जाता है।
हमारे यहां अभी धर्मांतरण पर बहस चल रही है। एक प्रश्न आता है कि हमारे यहां इतने लोग
धर्मांतरण क्यों कर गये? इतिहास बताता है कि मध्य युग में हमारे यहां
के राजा अपने कर्तव्य से विमुख हो गये। उनके परस्पर संबंध कटु रहे। प्रजा के प्रति उनके असंतोष का परिणाम ही रहा
है कि लोग विदेशी शासकों के प्रति भी सद्भावना दिखाते रहे। हमने देखा होगा कि अनेक
पुराने लोग आज भी कहते हैं कि अंग्रेजों का राज्य आज की अपेक्षा अच्छा था। हमारे यहां विदेशी विचाराधारा और शासन के प्रति
यह मोह अपने राज्य प्रबंधकों के कुशासन से उत्पन्न निराशा की वजह से विद्रोह के
रूप में परिवर्तित होता रहा। यह विद्रोह
की प्रवृत्ति इतनी रही कि राज्य प्रबंधक के इष्ट और पूजा पद्धति से प्रथक जाकर
समाज में अलग पहचान दिखने की प्रेरक बन गयी।
अध्यात्मिक ज्ञान के अभ्यास से हमारी समझ तो यह बनी है कि संसार में जितने
भी कथित संज्ञाधारी धर्म बने हैं वह राज्य के प्रेरणा से बने हैं। दरअसल ऐसे संज्ञाधारी धर्म भ्रम फैलाने के लिये
ही प्रकट किये गये हैं ताकि पूजा पद्धति के माध्यम से लोगों में आपसी संघर्ष कराकर
राज्य प्रबंध की नाकामियों से उनका ध्यान हटाया जाये। हमारे देश में धर्म से आशय कर्म तथा व्यवहार से
है। किसी भी प्राचीन ग्रंथ में धर्म का कोई नाम नहीं है। अच्छा राजा भगवान का दूसरा रूप माना गया है। इसके विपरीत विदेशी
विचारधाराओं के शीर्ष पुरुषं पूजा पद्धतियों से नये लोग जोड़कर अपने समाज को यह
जताते रहे है कि वह अपने कथित धर्म को ही श्रेष्ठ माने। यही कारण है कि आज विदेशों
में धर्म के नाम पर संघर्ष आज भी जारी है।
हमारे यहां राजधर्म बृहद धर्म का ही एक उपभाग माना जाता है। राजधर्म में स्थित लोग अगर अपने कर्म का
निर्वाह उचित रूप से करें तो प्रजा में उनकी छवि अच्छी बन सकती है। धर्म की रक्षा में मध्यम वर्ग की महत्वपूर्ण
भूमिका रहती है पर हम देख रहे हैं कि वह अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष कर रहा है।
धनिक वर्ग अपनी प्रभुता के मोह तथा अहकार में तल्लीन है। निम्म वर्ग के लिये भी हर पल संकट मुंह बायें
रहता है। हमारा मानना है कि हमारे यहां इस समय संकट इसलिये अधिक क्योंकि समाज को
स्थिर रखने वाला मध्यम वर्ग स्वयं ही अस्थिर हो गया है। हमारा यह भी मानना है कि राज्य प्रबंध सुशासन
का रूप ले तो हमारे देश में विदेशी विचारधाराओं के साथ उनके प्रवाह के लिये
लालायित लोगों का प्रभाव स्वतः कम हो जायेगा तब किसी अन्य प्रयास की आवश्यकता नहीं
होगी। अगर इस प्रयास में कमी रहेगी तो बाकी अन्य प्रयास न केवल विवाद खड़े करेंगे
बल्कि मजाक भी बनेगा।
माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके जन्म दिन पर बधाई।
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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