मनुष्य समुदाय इस धरतीपर सदियों से सांस ले
रहा है। यह मानना गलत है कि उसके मूल स्वमभाव में कोई अधिक अंतर आया है। जिस तरत
अन्य जीवों-पक्षू, पक्षियों तथा जलचरों का मूल स्वभाव नहीं बदला उसी तरह मनुष्य के रहन सहन तथा खान पान की
आदतें भले ही बदली हों पर उसके विचार, चिंत्तन तथा व्यवहार
में कोई अंतर न आया है न आयेगा। हम अगर अपने पौराणिक ग्रथों का अध्ययन करने तो इस
बात का आभास होता है कि मनुष्य समाज आज भी वैसा ही है जैसा पहले था। इसलिये ही उनमें व्याप्त संदेश आज भी प्रासंगिक
माने जाते हैं।
भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि
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यसयास्ति वित्तं स नरः कुलीन स पण्डित स श्रुतवान्गुणज्ञः।
स एव वक्ता स च दर्शनीयः।
सर्वे गुणा कांचनमाश्रयन्ति।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस मनुष्य के पास माया का भंडार उसे ही कुलीन, ज्ञानी, गुणवान माना जाता है। वही आकर्षक है। स्पष्टतः सभी के गुणों का आंकलन उसके धन के आधार पर किया जाता है।
तानीन्द्रियाण्यविकलानि तदेव नाम सा बुद्धिप्रतिहता वचनं तदेव।
अर्थोष्मणा विरहितः पुरुष क्षणेन सोऽप्यन्य एव भवतीति विचित्रमेतत्।।
हिन्दी में भावार्थ-एक जैसी इंद्रियां, एक जैसा नाम और काम, एक ही जैसी बुद्धि और वाणी पर फिर भी जब आदमी धन की गरमी से क्षण भर में रहित हो जाता है तब उसकी स्थिति बदल जाती है। इस धन की बहुत विचित्र महिमा है।
यह समाज भर्तृहरि महाराज के समय में भी था और आज भी है।
हम बेकार में परेशान होकर कहते हैं कि ‘आजकल
का जमाना खराब हो गया है।’ सच
बात तो यह है कि सामान्य मनुष्य की प्रवृत्तियां ही ऐसी है कि वह केवल भौतिक उपलब्धियां देखकर ही दूसरे के
गुणों का आंकलन करता है। इधर गुणवान
मनुष्य अपने अंदर गुणों का संचय करते हुए इतना ज्ञानी हो जाता है कि वह इस बात को समझ लेता है कि धन से नहीं वरन
गुणों से ही उसके जीवन की रक्षा होगी।
इसलिये वह समाज में प्रतिष्ठा अर्जित करने के लिये कोई अधिक प्रयास नहीं करता। उधर
अल्पज्ञानी और ढोंगी लोग थोड़ा पढ़लिखकर सामान्य व्यक्तियों के सामने अपनी चालाकियों के सहारे उन्हीं से धन वसूल कर
प्रतिष्ठित भी हो जाते हैं। यह अलग बात है कि इतिहास हमेशा ही उन्हीं महान लोगों को अपने पन्नों
में दर्ज करता है जिन्होंने अपने गुणों से वास्तव में समाज को प्रभावित किया जाता
है।
इसका एक दूसरा पहलू भी है। अगर हमारे पास अधिक धन
नहीं है तो इस बात की परवाह नहीं करना चाहिए। समाज के सामान्य लोगों की संकीर्ण
मानसिकता का विचार करके अपने सम्मान और असम्मान की उपेक्षा कर देना चाहिए।
जिसके पास धन है उसे सभी मानेंगे। आप अच्छे
लेखक, कवि, चित्रकार या कलाकार हैं पर उसकी अगर भौतिक उपलब्धि नहीं
होती तो फिर सम्मान की आशा न करें। इतना ही नहीं अगर आप परोपकार के काम में लगे हैं तब भी यह आशा न
करें कि बिना दिखावे अथवा
विज्ञापन के आपको कोई सम्मान करेगा। सम्मान या असम्मान से उपेक्षा करने के बाद आपके अंदर एक आत्मविश्वास पैदा होगा
जिससे जीवन में अधिक आनंद प्राप्त कर सकेंगे।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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