ज्ञानी लोग न बहस करते हैं न समाज के सुधार के लिये कोई अभियान चलाते हैं। तत्वज्ञानी जानते हैं कि इस त्रिगुणमयी माया के बंधन में फंसे संसार का प्रत्येक जीव अपनी प्रवृत्ति के अनुसार व्यवहार करता है। वह अपनी प्रवृत्तियों की निवृति का उपाय नहीं जानता। प्रत्येक जीव अपने रहन सहन, खानपान तथा संगत के व्यवहार से प्रभावित होता है। उसकी इंद्रियां जिस प्रकार के बाह्य वातावरण के संपर्क में आती हैं वैसे ही गुण उनके हो जाते हैं। मनुष्य के लिये निरंतर सहज, सरल और परिश्रमी बने रहना संभव नहीं है। काम, क्रोध और लोभ का मार्ग बुरा है पर उसमें भौतिकता का आकर्षण है इसलिये लोगों को उस पर चलना सहज लगता हैं। लोगों को यह लगता है कि प्रेम से नहीं वरन् शक्ति से समाज पर नियंत्रण पाया जाता इसलिये वह क्रोध करते है। कोई ज्ञानी या योगी हो जाये तभी उसकी मानसिकता में परिवर्तन आ सकता है वरना तो बहुत कम ही लोग हैं जो इस संसार की माया के दुष्प्रभाव से बच पाते हैं वरना तो सारा संसार भ्रमित होकर जीना सहज समझता है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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न दुर्जनः साधुदशामुपैति बहुप्रकारैरपि शिक्ष्यमाणः।
आमूलसिक्तः पयसा धृतेन न निम्बवृक्षो मधुरत्वमेति।।
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न दुर्जनः साधुदशामुपैति बहुप्रकारैरपि शिक्ष्यमाणः।
आमूलसिक्तः पयसा धृतेन न निम्बवृक्षो मधुरत्वमेति।।
‘‘दुष्ट व्यक्ति को कितना भी समझाओ वह अपना अभद्रता का व्यवहार नहीं छोड़ता जैसे नीम का वृक्ष भले ही दूध या धी से सींचा जाये पर वह मधुरता को प्राप्त नहीं कर सकता।
अंतर्गतमलो दृष्टस्तीर्थस्नानशतैरपिः
न शुध्यति यथा भापडं सुरत्या दाहितं च यत्।।
न शुध्यति यथा भापडं सुरत्या दाहितं च यत्।।
‘‘दुराचार तथा वासना में लिप्त व्यक्ति चाहे सैंकड़ें पर तीर्थ कर पर कभी पवित्र नहीं हो सकता जैसे मदिरा का पात्र तपाये जाने पर भी पवित्र नहीं होता।
यही कारण है कि जिनमें दुष्टता, स्वार्थ तथा मोह का भाव जिन लोगों में आ जाता है उसमें परिवर्तन की आशा करना व्यर्थ है। उल्टे दूसरे को सुधारने के प्रयास में स्वयं के अंदर ही दुर्गुण आने की आशंका रहती है। इसलिये जहां तक हो सके दुष्ट, स्वार्थी तथा कामी आदमी से दूर रहा जाये। इसके बावजूद अगर वह सामने आकर अपनी औकात दिखाये तो उस पर ध्यान न दिया जाये। वह इस धरती पर नीम के वृक्ष की तरह होते हैं जिनको दूध या घी से भी सींचा जाये पर वह मधुरता का गुण ग्रहण नहीं कर सकते।
----------------------संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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