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Saturday, November 5, 2011

श्रीगुरुवाणी-अध्यात्म कर्म करने से हृदय में निरंतर ज्योति प्रकाशित होती है (shri guruwani-adhyatma karama aur hridaya aur heart) rt)

             देश का विकास और आम आदमी का जीवन स्तर उठाने का दावा करने वाले यह कभी नहीं जानते कि बिना अध्यात्मिक ज्ञान के कोई भी विकास होता ही नहीं है। अक्सर यह दावा कि किया जाता है कि आजादी के बाद हमारे देश ने आर्थिक, वैज्ञानिक तथा सामाजिक क्षेत्र में विकास किया है पर इससे जो अपराध पनपा है उसकी बात कोई नहीं बताता। सच तो यह है कि पश्चिम में आर्थिक विकास और अपराध का संबंध स्पष्ट रूप से देखा जाता है पर आजादी के प्रारंभिक दिनों में आम भारतीय के अध्यात्मिक ज्ञान में लिप्त होने की वजह से इसका आभास नहीं होता था क्योंकि वह विकास के साथ अपने ज्ञान की रक्षा करता था। भारतीय शिक्षा पद्धति से भारतीय अध्यात्मिक ग्रंथों को परे किया गया पर फिर भी घर घर मौजूद रामायण, रामचरितमानस, और श्रीमद्भागवत गीता पढ़ी जाती थी तब इस कारण लोगों को तत्वज्ञान का पूर्ण ज्ञान नहीं तो मूल तत्व का आभास रहता था। अब शिक्षा ही इतनी कठिन और बोझ वाली हो गयी है कि घरों में भी अध्यात्म का अध्ययन संभव नहीं रहा इसलिये बच्चे ही क्या उनके माता पिता भी अध्यात्म ज्ञान से रहित होकर परिवारिक विकास की तरफ लगे हैं और उनका लक्ष्य केवल समाज में अपनी प्रतिष्ठा बचाये रखना हो गया है। चारों तरफ आर्थिक विकास की धूम है। कुछ लोगों ने समाज के अध्यात्म विकास को भी लक्ष्य बनाते हैं पर वह स्वयं ही अध्यात्म से परिचित नहीं है।
                          गुरुग्रंथ साहिब में कहा गया है कि
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                   गिआन अंजनु गुरि दीआ, अगिआन अंधेर बिनासु।
                  हरि किरपा ते संत भेटिआ, नानक मति परगासु।।
            ‘‘गुरु ज्ञान का दीपक मनुष्य के अंदर प्रकाशित करता है जिससे उसके अज्ञान के ंअंधेरा विलुप्त होता है। हरिकृपा से ही किसी संत से भेंट होती है जो कि परमगति का कारण बनती है।’’
                        अधिआत्म करम करे दिनु राती।
                       निरमल जोति निरंतरि जाती।।’’
               ‘‘अध्यात्म करम दिन रात करने से हृदय में निरंतर पवित्र ज्योति जलती है जो कि निर्मलता प्रदान करती है।’’
                     सच बात तो यह है कि अधिकांश पहली लोग अध्यात्म का अर्थ ही नहीं जानते हैं। उनके विचार में अध्यात्म कोई बाहर विचरने वाला तत्व है। अध्यात्मिक ज्ञान की बड़ी बड़ी बातें करने वाले लोगों को यही नहीं पता कि अध्यात्म का मतलब हम स्वयं हैं और ज्ञान का मतलब हमें अपने को पहचानना है। इसके लिये जरूरी है कि देह से प्रथक होकर विचार किया जाये। अपनी सांसरिक सक्रियता में मन और बुद्धि तत्व के योगदान और आत्म तत्व की निष्क्रियता को अनुभव किया जाये। इसके लिये आवश्यक है कि कोई ज्ञानी गुरु मिले। ज्ञानी गुरु न मिले तो अपने इष्ट देव की हृदय से भक्ति करें तो कभी न कभी ज्ञान गुरु मिल ही जायेगा।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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