प्रथ्वी पर स्थित हर जीव का यह स्वभाव है कि वह अपने समाज में श्रेष्ठ दिखना चाहता है। एक वन में एक शेर ही रह सकता है या गली में एक कुत्ता रह सकता है। दो होने पर संघर्ष होता है। मनुष्य भी इससे अलग नहंी है। यह अलग बात है कि वह श्रेष्ठ दिखने के लिये अपनी गली या मोहल्ला खाली नहीं करवाता बल्कि अपनी गतिविधियों से योग्यता प्रमाणित करने का प्रयास करता। प्रयास नहीं भी करे तो अपने मुख से अपनी बड़ाई अवश्य करता है। कुछ लोग तो अपने लिये समाज में विद्यमान शक्ति स्तोत्रों पर अपना वर्चस्व स्थापित करते हैं ताकि उन्हें श्रेष्ठ समझा जाये। समाज के आर्थिक, राजनीतिक, कला तथा धार्मिक शिखरों पर लोग इसलिये पहुंचना चाहते हैं ताकि वह समाज में प्रभावी दिखें। यह अलग बात है कि ऐसे शिखर या संस्थान समाज में अपनी गतिविधियों से उसकी रक्षा करने के लिये बने होते हैं इसलिये उनके पदों पर बैठे लोग अच्छी नजरों से देखे जाते हैं। मगर अपने पद पर बैठकर समाज का भला करना ऐसे लोगों के बूते का नहीं होता जो कि केवल इन पर बैठना ही अपना धर्म समझते हैं।
अथर्ववेद में कहा गया है कि
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भूतो भूतेष पयाआ दधाति स भूतानामाधिपतिर्वभव।
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भूतो भूतेष पयाआ दधाति स भूतानामाधिपतिर्वभव।
‘‘जो स्वयं प्रभावशाली बनकर सब लोगों की सहायता करता है वह सबका स्वामी हो जाता है।’’
ओम्सूर्यमन्यान्तस्वापाचयुर्ष जागृततादहमिन्द्र इवारिष्टो अक्षितः।
‘‘अन्य लोग भले ही सोते रहें पर पराक्रमी मनुष्य हानि तथा ह्रास से रहित होकर जागता रहे।’’
लोग समाज के उच्च शिखर पदों पर बैठकर आत्ममुग्ध हो जाते हैं कि वह तो अब समाज के प्रभावशाली लोग हैं और उनको अब कुछ करने के लिये जरूरत नहीं है। वह अपना सारा काम मातहतों के सहारे छोड़ देते हैं जिनका लक्ष्य समाज का भला करना नहीं बल्कि अपने मालिक को प्रसन्न करना ही ध्येय रह जाता है। इस तरह हमारे देश में प्रभावशाली लोगों का बहुत बड़ा झुंड है पर समाज निरंतर गर्त में जा रहा है। प्रभावशाली होने के लिये चतुर होने के साथ ही पराक्रमी होना जरूरी है जबकि हम देख रहे हैं कि चालाक लोगों की सीमा केवल पद प्राप्त करना ही रह गया है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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