किसी भी कर्म का फल मिलता है उसमें देर सबेर हो सकती है। हालांकि यह कोई नियम नहीं है कि सभी कर्मों का फल कर्ता की इच्छानुसार प्राप्त हो। शायद यही कारण है कि हमारे यहां अध्यात्मिक दर्शन में सांसरिक कर्म में निष्काम कर्म की बात कही गयी है।
वेदांत दर्शन में कहा गया है कि
---------------
उपलब्धिवदनियमः।
‘‘भोगों की प्रप्तियों की भांति कर्म करने में भी कोई नियम नहीं है।
यथा तक्षाभयथा।
इसके सिवाय जैसे कारीगर कभी काम करता है कभी नहीं करता है।
---------------
उपलब्धिवदनियमः।
‘‘भोगों की प्रप्तियों की भांति कर्म करने में भी कोई नियम नहीं है।
यथा तक्षाभयथा।
इसके सिवाय जैसे कारीगर कभी काम करता है कभी नहीं करता है।
वैसे फल की इच्छा करते हुए जब कर्म किया जाता है तो हमारा मन विचलित होने के साथ मस्तिष्क की एकाग्रता भंग होने की आशंका रहती है और कर्म उचित प्रकार से संपन्न नहीं हो पाता। दूसरी बात यह भी है कि जब कर्म के बाद फल प्राप्त नहीं होता या उसमें विलंब होता है तो व्यर्थ का तनाव पैदा होता है। हमें यह समझना चाहिए कि प्रकृति भी एक कारीगर की तरह है जो कभी कर्म करती है कभी नहीं करती है। मनुष्य का यह धर्म है कि वह अपना नियमित कर्म करे पर फल देने या न देने की का निर्णय प्रकृति पर छोड़ देना चाहिए।
मूल बात यह है कि हमें अधिक अपेक्षायें, इच्छायें और कामनायें मन में नहीं रखना चाहिए। कालांतर में उनके पूर्ण होने पर सुख मिलता है और न मिलने पर दुःख होने लगता है। तत्वज्ञानी इसलिये ही सुख, दुख, प्रसन्नता, शोक तथा मान सम्मान से परे हो जाते हैं क्योंकि वह जानते है इस संसार में सभी चीजें नश्वर हैं। सत्य जहां सूक्ष्म और स्थिर है वहीं माया विस्तार पाने के साथ ही रूप बदलती है। उत्पन्न होकर नष्ट होना फिर प्रकट होना माया की सामान्य प्रकृति है। जिस तरह सत्य या परमात्मा अनंत है वैसे ही माया भी अनंत है। उसके नियम समझना भी कठिन है।
इसके विपरीत सामान्य मनुष्य माया को अपने वश करने कें लिये पूरी जिंदगी दाव पर लगा देता है पर हाथ उसके कुछ नहीं आता। खेलती माया है उसके नियम अज्ञात हैं फिर भी आदमी यही सोचता है कि वह अपने नियमों के अनुसार खेल रहा है।
---------संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
No comments:
Post a Comment