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Friday, July 15, 2011

गुरु पूर्णिमा का अध्यात्मिक महत्व-हिन्दी धार्मिक लेख (guru purnima adhyatmik mahatva-hindi charmik lekh)

        आज गुरुपूर्णिमा का पावन पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। हमारे अध्यात्म दर्शन में गुरु का बहुत महत्व है-इतना कि श्रीमद् भागवत् गीता में गुरुजनों की सेवा को धर्म का एक भाग माना गया है। शायद यही कारण है कि भारतीय जनमानस में गुरु भक्ति का भाव की इतने गहरे में पैठ है कि हर कोई अपने गुरु को भगवान के तुल्य मानता है। यह अलग बात है कि अनेक महान संत गुरु की पहचान बताकर चेताते हैं कि ढोंगियों और लालचियों को स्वीकार न करें तथा किसी को गुरु बनाने से पहले उसकी पहचान कर लेना चाहिए। भारतीय जनमानस की भलमानस का लाभ उठाकर हमेशा ही ऐसे ढोंगियों ने अपने घर भरे हैं जो ज्ञान से अधिक चमत्कारों के सहारे लोगों को मूर्ख बनाते हैं। ऐसे अनेक कथित गुरु आज अधिक सक्रिय हैं जो नाम तो श्रीगीता और भगवान श्रीकृष्ण का लेते हैं पर ज्ञान के बारे में पैदल होते हैं।
ऐसा सदियों से हो रहा है यही कारण है कि संत कबीर ने बरसों पहले कहा था कि 
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‘‘गुरु लोभी शिष लालची दोनों खेलें दांव।
दोनों बूड़े बापुरै, चढ़ि पाथर की नांव।।
           "गुरु और शिष्य लालच में आकर दांव खेलते हैं और पत्थर की नाव पर चढ़कर पानी में डूब जाते हैं।"
               संत कबीर को भी हमारे अध्यात्म दर्शन का एक स्तंभ माना जाता है पर उनकी इस चेतावनी का बरसों बाद भी कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता। आजकल के गुरु निरंकार की उपासना करने का ज्ञान देने की बजाय पत्थरों की अपनी ही प्रतिमाऐं बनवाकर अपने शिष्यों से पुजवाते हैं। देखा जाये तो हमारे यहां समाधियां पूजने की कभी परंपरा नहीं रही पर गुरु परंपरा को पोषक लोग अपने ही गुरु के स्वर्गवास के बाद उनकी गद्दी पर बैठते हैं और फिर दिवंगत आत्मा के सम्मान में समाधि बनाकर अपने आश्रमों में शिष्यों के आने का क्रम बनाये रखने के लिये करते हैं।
आजकल तत्वज्ञान से परिपूर्ण तो शायद ही कोई गुरु दिखता है। अगर ऐसा होता तो वह फाईव स्टार आश्रम नहीं बनवाते। संत कबीर दास जी कहते हैं कि-
‘‘सो गुरु निसदिन बन्दिये, जासों पाया राम।
नाम बिना घट अंध हैं, ज्यों दीपक बिना धाम।।’’
           "उस गुरु की हमेशा सेवा करें जिसने राम नाम का धन पाया है क्योंकि बिना राम के नाम हृदय में अंधेरा होता है।"
                      राम का नाम भी सारे गुरु लेते हैं पर उनके हृदय में सिवाय अपने लाभों के अलावा अन्य कोई भाव नहीं होता। राम का नाम पाने का मतलब यह है कि तत्व ज्ञान हो जाना जिससे सारे भ्रम मिट जाते हैं। अज्ञानी गुरु कभी भी अपने शिष्य का संशय नहीं मिटा सकता।
                     संत कबीरदास जी कहते हैं कि- 
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‘‘जा गुरु से भ्रम न मिटै, भ्रान्ति न जिवकी जाय।
सौ गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय।।’’
                "जिस गुरु की शरण में जाकर भ्रम न मिटै तथा मनुष्य को लगे कि उसकी भ्रांतियां अभी भी बनी हुई है तब उसे यह समझ लेना चाहिए कि उसका गुरु झूठा है और उसका त्याग कर देना चाहिए"
           आजकल तो संगठित धर्म प्रचारकों की बाढ़ आ गयी है। अनेक कथित गुरुओं के पास असंख्यक शिष्य हैं फिर भी देश में भ्रष्टाचार और अपराधों का बोलबाला इससे यह तो जाहिर होता है कि भारत में अध्यात्मिक ज्ञान के प्रभाव सर्वथा अभाव है। व्यवसायिक धर्म प्रचाकर गुरु की खाल ओढ़कर शिष्य रूपी भेड़ों को एक तरह से चरा रहे हैं। मजे की बात यह है कि ऐसे लोग भगवान गुरु नानक देव, संत कबीर दास, कविवर रहीम तथा भक्ति साम्राज्ञी मीरा के नाम का भी आसरा लेते हैं जिनकी तपस्या तथा त्याग से भारतीय अध्यात्म फलाफूला और विश्व में इस देश को अध्यात्म गुरु माना गया। आज के कथित गुरु इसी छबि को भुनाते हैं और विदेशों में जाकर रटा हुआ ज्ञान सुनाकर डॉलरों से जेब भरते हैं।
            आखिर गुरु और ज्ञान कैसे मिलें। वैसे तो आजकल सच्चे गुरुओं का मिलना कठिन है इसलिये स्वयं ही भगवान श्रीकृष्ण का चक्रधारी रूप मन में रखकर श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करें तो स्वतः ही ज्ञान आने लगेगा। दरअसल गुरु की जरूरत ज्ञान के लिये ही है पर भक्ति के लिये केवल स्वयं के संकल्प की आवश्यकता पड़ती है। भक्ति करने पर स्वतः ज्ञान आ जाता है। ऐसे में जिनको ज्ञान पाने की ललक है वह श्रीगीता का अध्ययन भगवान श्रीकृष्ण को इष्ट मानकर करें तो यकीनन उनका कल्याण होगा। गुरुपूर्णिमा के इस पावन पर्व पर ब्लाग लेखक मित्रों तथा पाठकों बधाई देते हुए हम आशा करते हैं कि उनका भविष्य मंगलमय हो तथा उन्हें तत्व ज्ञान के साथ ही भक्ति का भी वरदान मिले।
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कवि,लेखक,संपादक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप', ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak  Raj Kukreja 'Bharatdeep' Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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