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Monday, July 18, 2011

पतंजलि योग साधना-अविद्या नाश के लिये क्रिया योग आवश्यक (kriya yoga for knowledge or gyan)

                 भारतीय पतंजलि योग विज्ञान अत्यंत व्यापक है और इसे पूरी तरह बिना समझे कोई गुरु जैसी पदवी की योग्यता धारण नहीं कर सकता। योगसाधना की चरमस्थिति समाधि है। संसार, देह और अन्य सभी प्रकार के भौतिक पदार्थों के अस्तित्व के आभास से रहित होना ही समाधि है। इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि देह के क्लेशों से रहित होकर आत्मा में ही अपना ध्यान स्थापित करना भी योग का सर्वश्रेष्ठ रूप है।
योग साधना का यह आशय कतई नहीं है कि आसन या प्राणायाम कर ही इतिश्री समझ लें। यह दोनों तो आष्टांग योग के दो भाग मात्र हैं। इसका अंतिम भाग समाधि है जहां तक पहुंचने के लिये प्राणायाम तथा आसन तो मार्ग मात्र हैं। शून्य में स्थापित होने पर ही समाधि की अवस्था समझना चाहिए।
        पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि
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               तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः।।
        ‘तप, स्वाध्याय और ईश्वर में ध्यान लगाना क्रिया योग है।’
               समाधिभावनार्थः क्लेशतनूकरणार्थश्च।
          ‘यह समाधि की सिद्धि करने वाला और अविद्या जैसे क्लेशों का नाश करने वाला है।’
                अविद्यास्मितारागद्वेषभिनिवेशाः क्लेशः।
           ‘अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश यह सभी क्लेश हैं।
           तत्वज्ञान होने पर ही मनुष्य को इस संसार का पूर्ण आंनद मिल सकता है। इसलिये क्रिया योग करना आवश्यक है। क्रिया योग का आशय तप, स्वाध्याय और परमात्मा के नाम का स्मरण करना है। प्राणयाम तथा योगासन से शरीर और मन में स्फूर्ति आती है तब किसी रचनात्मक कर्म की प्रेरणा स्वतः प्राप्त होती है। देह में विचर रही ऊर्जा किसी सकारात्मक कर्म के लिये प्रेरित करती है। ऐसे में तप और स्वाध्याय के माध्यम से क्रिया योग कर संसार को समझा जा सकता है। नये विषयों की खोज, अनुसंधान और शोध के लिये प्रयत्नशील होना चाहिए भले ही इससे शरीर को थोड़ा कष्ट पहुंचे। यह प्रयास तप करने जैसा ही होता है। संबंधित ग्रंथों का अध्ययन कर अपनी स्वाध्याय की भूख को जिज्ञासा से उपजी भूख को भी शांत करना चाहिए। इसी क्रिया योग से ही योग साधना के अभी तक उद्घाटित न किये गये रहस्यों को भी समझा जा सकता है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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