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Sunday, June 19, 2011

चाणक्य नीति-जिसका अनिष्ट करना हो उससे मधुर वाणी में बात करें(chankya neeti-jiska bura karna ho usse meetha bolen)

       वैसे तो हर आदमी को सदैव मीठा बोलना चाहिए पर इसकी परिवार और मित्रता के व्यवहार में इसकी सीमा है। अपने परिवार के सदस्यों और मित्रों में जिन लोगों का व्यवहार सुधारना है उनसे कभी कभी सख्ती से भी पेश आना चाहिए वरना उनके मार्ग से भटकने की संभावना भी रहती है। इतना ही नहीं अपने निकटस्थ व्यक्तियों के कार्यों पर नज़र हमेशा रखना चाहिए। अगर वह कोई ऐसा काम करते हैं जो कालांतर में उनके लिये दुःख का कारण बनने की संभावना हो तो उन्हें सख्त लहजे में समझाना चाहिए।
       हमारे यहां कुछ आधुनिक विद्वानों का मानना है कि अगर बेटे के पांव में जूता बाप की नाप के बराबर या बेटी की जुती का माप मां की माप के बराबर हो तो वह उनको मित्र या सहेली समझें। फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में भी पात्र ऐसे रचे जाते हैं जिसमें माता पिता अपनी पुत्री या पुत्र से इस तरह व्यवहार शालीन व्यवहार करते हैं जैसे कि वह उनके बराबर हों। हम इसका विरोध नहीं कर रहे पर यह भी एक सच्चाई कि फिल्म और टीवी जैसेे आदर्श चरित्र सामान्य जीवन में दिखाई नहीं देते। समाज के सत्य उससे ज्यादा कटु हैं जितने उनके काल्पनिक कथानकों में दिखाई देते हैं। आज की लड़के लड़कियों पर उनके शैक्षणिक संस्थान दूर होने तथा उनके सत्रों के बड़े होने के कारण माता पिता कम ही नज़र रख पाते हैं जिस कारण ऐसी घटनायें सामने आती हैं जो वीभत्स दृश्य होने के कारण लोगों के मन में पीड़ित के प्रति करुणा का भाव पैदा करती हैं। पुत्र या पुत्री कारुणिक स्थिति में पहुंचे उससे अच्छा है कि मन मारकर उनके साथ सख्त व्यवहार रखना भी जरूरी लगता है
        महान नीति विशारद चाणक्य कहता है कि
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        यस्य चाप्रियामिच्छेत तस्य ब्रूयात् सदा प्रियम्।
          व्याधो मृगवधं कर्तृ गीतं गायति सुस्वरम्।।
            ‘जिसका बुरा करने की इच्छा हो उसके साथ हमेशा ही मीठा बोलना चाहिए जैसे शिकारी हिरण का      वध करने के लिये मीठे स्वर में   गीत गाता है।’’
          उसी तरह यह भी देखना चाहिए कि हमसे या परिवार और मित्र समुदाय के सदस्यों के साथ कोई अन्य मनुष्य अधिक प्रेमपूर्ण व्यवहार कर रहा है तो उसका उद्देश्य क्या है? इतना ही नहंी अगर हम किसी व्यक्ति का अनिष्ट चाहते हैं तो उसके प्रति सद्व्यवहार दिखायें। अनावश्यक रूप से उसकी प्रशंसा करें तब वह भ्रमित होकर अतिसक्रियता दिखायेगा जो कि कालांतर में उसके लिये घातक होगी।
           चाणक्य नीति केवल राजाओं के लिये ही नहीं  वरन् सामान्य जीवन में कितनी उपयोगी है यह उनके इस तरह के संदेशों से समझा जा सकता है। उनका आशय यही है कि किसी का बुरा न करें। हमेशा सतर्क रहें और अगर विरोधी अक्षम्य अपराध करे तो उसे इतनी चालाकी से अहिंसक होकर दंड दें कि उसे इसका आभास तक न हो।
लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',ग्वालियर
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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1 comment:

Rahul Singh said...

अच्‍छी प्रस्‍तुति.

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