हमारे देश में बढ़ते आर्थिक विकास के साथ ही व्यसनों की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कितनी हैरानी की बात है कि हम दावा करते हैं कि देश में शिक्षा का विकास हुआ है पर यह नहीं दिखाई देता कि लोगों की की ज्ञान तथा चिंतन क्षमता का भी बुरी तरह ह्रास हुआ है। सिगरेट के पैकेट पर लिखा रहता है कि ‘सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है’, लोग इसे पहले तो पढ़ते नहीं और पढ़ते हैं तो उसे धूंऐं की तरह अपने दिमाग से उड़ा देते हैं। शराब की बोतल पर लिखा मिलता है कि ‘शराब पीना स्वास्थ्य के लिये खतरनाक है’, पर दिन प्रतिदिन उसका सेवन बढ़ता जा रहा है। शादी जैसे सामाजिक कार्यक्रमों के साथ ही त्यौहार के अवसर पर शराब का व्यसन अब फैशन बन गया है। कहां तो पहले यह स्थिति थी कि लोग शराब पीने वाले से ही नहीं बल्कि सिनेमा देखने वाले लड़के के साथ अपनी बेटी का ब्याह करना पसंद नहीं करते थे और कहां अब यह स्थिति अब पूरा समाज ही इसे फैशन मानकर मद में लिप्त हो रहा है।
इस विषय पर कौटिल्य महाराज कहते हैं कि
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स्निग्धदीपशिखालोकविलेभितक्लिोचनः।
मृत्युमृच्छत्य सन्देहात् पतंगः सहसा पतन्।।
"दीपक की स्निग्ध शिखा के दर्शन से जिस पतंगे के नेत्र ललचा जाते हैं और वह उसमें जलकर जान देता है। यह रूप का विषय है इसमें संदेह नहीं है।"
गन्धलुब्धो मधुकरो दानासवपिपासया।
अभ्येत्य सुखसंजवारां गजकर्णझनज्झनाम्
"गंध की वजह से लोभी हो चुका मद रूपी आसव पीने की इच्छा करने वाला भंवरा सुख का अनुभव कराने वाली झनझन ध्वनि हाथी के कान के समीप जाकर मरने के लिये ही करता है।"
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स्निग्धदीपशिखालोकविलेभितक्लिोचनः।
मृत्युमृच्छत्य सन्देहात् पतंगः सहसा पतन्।।
"दीपक की स्निग्ध शिखा के दर्शन से जिस पतंगे के नेत्र ललचा जाते हैं और वह उसमें जलकर जान देता है। यह रूप का विषय है इसमें संदेह नहीं है।"
गन्धलुब्धो मधुकरो दानासवपिपासया।
अभ्येत्य सुखसंजवारां गजकर्णझनज्झनाम्
"गंध की वजह से लोभी हो चुका मद रूपी आसव पीने की इच्छा करने वाला भंवरा सुख का अनुभव कराने वाली झनझन ध्वनि हाथी के कान के समीप जाकर मरने के लिये ही करता है।"
हैरानी इस बात की है कि हमारे देश में समाज पर नैतिक तथा धार्मिक रूप से नियंत्रण करने वाले शिखर पुरुष स्वयं ही ऐसे कामों में लिप्त हो जाते हैं जो पारंपरिक रूप से वर्जित हैं। उनकी देखा देखी छोटे लोग भी उसका अनुसरण करते हैं। शराब, जुआ, परस्त्रीमगन तथा सट्टे की प्रवृत्ति के दुष्परिणाम होते हैं पर देश में जिन लोगों को धन पचाने की शक्ति नहीं है वह व्यसनों की तरफ चले जाते हैं। धन का मजा व्यसन से जुड़ने पर ही होता है-ऐसा उनका मानना है। यही कारण है कि धन चूक जाने पर ऐसे व्यसनी अपरहण तथा हत्या जैसे कुत्सित कार्य में लिप्त हो जाते हैं। जिनको अवसर नहीं मिलता वह आत्महत्या कर लेते है। कहने को हम लोग रौशनी में पतंगे के जल मरने या मौत आने पर गीदड़ के शहर में घुसने की बातें करते हैं पर सच यह है कि यह इंसानों को समझाने के लिये ही कही गयी हैं।
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लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप',Gwalior
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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