हमारी पांच इंद्रियां आंख, कान, नाम. मुख तथा हाथ पांव अपना काम करती हैं। यह देह में स्थित मन, बुद्धि तथा अहंकार की प्रकृतियों से नियंत्रित होती है। हमारी देह बाहरी गतिविधियों से प्रभावित होती है। वह नाक से सुगंध ग्रहण करती है, आंखों से सांसरिक रूप देखती और कान से शब्द स्वर सुनती है। मुख से रस ग्रहण करती है और शरीर से स्पर्श अनुभव करती है। हम बाहरी गतिविधियों से प्रभावित होते हैं इसलिये शब्द बोलने और सुनने का प्रभाव भी अनुभव करते हैं। जिन लोगों के पास तत्वज्ञान नहीं है वह अपनी इंद्रियों की गतिविधियों और उनके प्रभाव से अवगत न होने के कारण हमेशा असहजता की स्थिति में रहते हैं। खासतौर से शब्दों में मामले में लापरवाह होते हैं। न केवल अनाप शनाप शब्द बोलते हैं बल्कि बकवास करने वालों की संगत भी करते हैं।
मनुस्मृति में कहा गया गया है कि
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वाच्यार्था नियताः सर्वेवांमूलाः वाग्विनिःसृताः।
तां तु यः स्तेदयेद्वाचं स सर्वस्तेयकृन्नरः।।
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वाच्यार्था नियताः सर्वेवांमूलाः वाग्विनिःसृताः।
तां तु यः स्तेदयेद्वाचं स सर्वस्तेयकृन्नरः।।
‘‘शब्द से सभी अर्थ उत्पन्न होते हैं। उनके बोलने से ही सभी का ज्ञान होता है। समस्त शास्त्रों ं का प्रादुर्भाव शब्द से ही हुआ है। अतः शब्द ही संसार का मूलाधार है। अतः झूठ बोलने वाला या दूसरे के शब्द चोरी करने वाला सबसे बड़ा चोर है।’
एक दूसरी बात भी सामने आती है। अक्सर कुछ लोग दूसरे की कही बात अपने नाम से कहते हैं। वैसे हम हिन्दी साहित्य जगत में यह भी देखते हैं कि विचार, कविता और कथाऐं चोरी कर ली जाती हैं। हिन्दी में इंटरनेट पर कुछ सामान्य लोग अपनी रचनाऐं लिखते हैं और अनेक पत्र पत्रिकाऐं चोरी कर उसे छाप देती हैं। ऐसा भी हुआ है कि अध्यात्मिक विषयों के लेखों की चोरी कर लेखक से कहा जाता है कि ‘आप तो वैसे ही सेवा कर रहे हैं पर नाम की चिंता क्यों करते हैं।’
कहने का अभिप्राय यह है कि यह चोरी सबसे बड़ा पाप है। इसके अलावा आजकल तो झूठ बोलने का फैशन हो गया है। लोग झूठ बोलना चालाकी मानने लगे हैं। समाज में इसलिये ही नैतिक पतन चरम पर पहुंच गया है। संवेदनाऐं मर गयी हैं और भले मनुष्य होने का दावा सभी करते हैं पर कुछ लोग पशुओं से अधिक बुरा व्यवहार करने लगे हैं। हमें ऐसी बुराई से बचना चाहिए जिसके पाप का पश्चाताप नहीं किया जा सके, पर इसके लिये यह जरूरी है कि पाप क्या है और पुण्य क्या, इस बात को समझें।
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लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप',Gwalior
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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