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Wednesday, March 16, 2011

दूसरे पर विश्वास करने की सीमा होती है-हिन्दू अध्यात्मिक लेख (vishvas aur sawdhani-hindu dharmik vichar)

कहा जाता है कि आजकल कलियुग चल रहा है और मनुष्य की प्रवृत्ति पर राक्षसत्व हावी है। ऐसे में सतयुग, त्रेतायुग तथा द्वापर काल में महामनीषियों की कही गयी बातें अधिक प्रासंगिक हो जाती हैं। हालांकि इन सात्विक संदेशों को देखें तो एक प्रश्न उठता है कि हमारे देश में कलियुग कब नहीं रहा। यह भी विचार आता है कि सतयुग, त्रेतायुग या द्वापर में मनुष्य की प्रवृत्तियां दैवीय होने का भ्रम ही है न कि सच। आखिर महान विद्वान विदुर क्यों कहते हैं कि जो अविश्वसनीय हो उस पर तो विश्वास करना ही नहीं चाहिए पर जो विश्वास योग्य हो उस पर भी अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए।
महात्मा विदुर कहते हैं
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न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्।
विश्वासाद भयमुत्पन्नं मूलान्यपि निकृन्तति।
जिस मनुष्य का विश्वास प्रमाणिक न हो उस पर तो विश्वास करना ही नहीं चाहिए पर जिस पर जो योग्य हो उस भी अधिक विश्वास न करें। विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है वह मूल लक्ष्य को ही नष्ट कर डालता है।
"अनीर्षुर्गुप्तदारश्च संविभागी पियंवदः।
श्लक्ष्णो मधुरपाक् स्वीणां न चासां वशगो भवेत्।।"
"मनुष्य ईर्ष्या रहित, स्त्रियों की रक्षा करने वाला, संपत्ति का न्यायपूर्वक बांटने वाला, प्रिय वाणी बोलने वाला, साफ सुथरा तथा स्त्रियों से सद्व्यवहार करने वाला हो परंतु किसी के वश में न हो।"
अगर हम आजकल अपने देश में हो रहे अपराधों को देखें तो उनमें से अधिकतर विश्वासघात का परिणाम होते हैं। खासतौर से स्त्रियों के प्रति हो रही अपराधों को देखें। आजकल ऐसी अनेक घटनायें होती हैं जिसमें स्त्रियों के साथ बलात्कार या हत्यायें की जाती हैं। अनेक जगह तो उनको गठरी में मारकर फैंक दिया जाता है। समाज और अपराध विशेषज्ञ कहते हैं कि स्त्रियों के प्रति अपराध उनके निकटस्थ लोग ही करते हैं। कहंी परिवार तो कहीं जानपहचान वाले ही उनको निशाना बनाते हैं। हमारे यहां संयुक्त परिवार की परंपरा के विघटन के बाद स्थितियां बदली हैं। अपने परिवार तथा रिश्तेदारों की बजाय लोग गैरों पर अधिक विश्वास करने लगे हैं। पुरुष के लिये धन का विषय हो या स्त्री के सम्मान का सवाल इसमें अब विश्वासघात अपना काम करने लगा है। आजकल पुरुष हो या स्त्री चिकनी चुकड़ी बातों में आकर हाल ही दूसरे पर विश्वास करने लगते हैं। ऐसे में जहां पुरुष अपना धन तो स्त्री अपने सम्मान के साथ जान तक से हाथ धो बैठती हैं।
हमारा अध्यात्मिक ज्ञान कितना शक्तिशाली और प्रासंगिक है यह हम तभी समझ सकते हैं जब उसका अध्ययन करते हुए ज्ञान को धारण करें। इसलिये भारतीय अध्यात्मिक ग्रंथों का नियमित अध्ययन करना चाहिए। ऐसा करने से जहां ज्ञान प्राप्त होता है वहीं किसी से व्यवहार करने में सतर्कता का भाव पैदा होता है। तब यह भी पता लगता है कि हम ऐसे लोगों पर ही भरोसा करते हैं जिन्होंने अपना साम्राज्य ही धोखे पर खड़ा किया है।
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लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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