यस्मिन रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनाऽगमः।
निग्रहोऽनुग्रहो नास्ति स कष्टः किं कारिष्यति।
हिन्दी में भावार्थ-जिसके नाराज होने पर किसी प्रकार का भय न हो और जिसके प्रसन्न होने पर भी धन प्राप्ति की आशा न हो और जो दंड देने और कृपा करने की सामर्थ्य नहीं रखता वह अप्रसन्न होकर भी क्या करेगा?
निग्रहोऽनुग्रहो नास्ति स कष्टः किं कारिष्यति।
हिन्दी में भावार्थ-जिसके नाराज होने पर किसी प्रकार का भय न हो और जिसके प्रसन्न होने पर भी धन प्राप्ति की आशा न हो और जो दंड देने और कृपा करने की सामर्थ्य नहीं रखता वह अप्रसन्न होकर भी क्या करेगा?
निर्विषणाऽपि सर्पेण कर्त्तव्या महतो फणा।
विषमस्तु न चाप्यस्तु घटाटोपो भयंकर।।
हिन्दी में भावार्थ-विषहीन सर्प भी समय आने पर अपना फन फैलाता है। इस तरह जीवन में कभी आडम्बर होना भी आवश्यक है।
विषमस्तु न चाप्यस्तु घटाटोपो भयंकर।।
हिन्दी में भावार्थ-विषहीन सर्प भी समय आने पर अपना फन फैलाता है। इस तरह जीवन में कभी आडम्बर होना भी आवश्यक है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे देश में चाणक्य जैसा कोई राजनीति विशारद नहीं हुआ है। कहने को कथित रूप से हमारे देश के अनेक वरिष्ठ नेता अपने आपको चाणक्य कहलाते हुए प्रसन्न होते हैं पर सच यह है कि कोई उनके चरित्र के सामने पासंग भी नहीं ठहरता। देश के राजकाज में संलग्न लोग केवल अपने घर भरने और अपनी कुर्सी बचाने तक ही अपनी गतिविधियां सीमित रखते हैं। स्थिति यह है कि राजकाज के होने के बावजूद अपराधी तथा राष्ट्रद्रोही तत्व उनसे खौफ नहीं खाते। खज़ाने की लूट में सकिय लोगों के मन में राज्य के दंड का कोई खौफ नहीं है। अधिक बात की क्या जाये हमारे अनेक राजकाज कर्मी किसी को दंड दिलाने की कार्यवाही करें, यह तो सोचना भी व्यर्थ है वह तो ऐसा करने की धमकी भी नहीं दे पाते। राज्य और प्रजा के प्रति अपराध करने वालों का स्तर अब इतना ऊंचा हो गया है कि राज्य काज में संलग्न लोग उनको सलाम ठोकते हैं। विद्वान उनके लिये दलाली का काम करते हैं और प्रजा के प्रहरी उसकी बजाय शिखर पुरुषों की सुरक्षा करते हैं। इसका कारण यह है कि हमारे देश की व्यवस्था को एक मुर्दा सर्प बना दिया गया है। जिसके पास फुफकारने तक की न शक्ति है न इच्छा।
चाणक्य एक महान विद्वान थे। जिन्होंने समाज के लिये राजनीतिक सिद्धांतों का सृजन किया जबकि आज के पेशेवर राजनेता केवल अपने परिवार और मित्रों के लिये स्वार्थ की राजनीति करते हैं। ऐसे में जो नयी पीढ़ी के लोग राजनीति करना चाहते हैं वर चाणक्य की वास्तविक शिक्षा को समझें और उस मार्ग पर चलें तभी इस देश का उद्धार संभव है।
------------
संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
No comments:
Post a Comment