हिन्दी में भावार्थ-ग्रहण, स्वरूप, अस्मित, अन्वय और अर्थतत्व इन पांचों अवस्थाओं में संयम करने से मन सहित इंद्रियों पर विजय प्राप्त हो जाती है।
रूपलावण्यबलवज्रसंहनत्वानि कायसम्पत्।।
हिन्दी में भावार्थ-रूप, लावण्य, बल और मानसिक दृढ़ता यानि वज्र एक संगठन होने के साथ ही शरीर की संपत्ति है।
ततो मनोजवित्वं विकरणभावः प्रधानजयश्च।।हिन्दी में भावार्थ-इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने मन के सदृश गति, शरीर के बिना विषयों को अनुभव करने की शक्ति और प्रकृत्ति पर अधिकार स्वतः प्राप्त हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-भारतीय योग साधना के प्रचारक केवल आसन तथा प्राणायाम करने के संदेश के साथ ही इसे केवल स्वस्थ रहने का उपाय बताते हैं। यह गलत नहीं है पर इससे सीमित उद्देश्य की प्राप्त होती हैं । योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान अनेक प्रकार की सिद्धियां भी प्राप्त हो जाती हैं। अब यहां सिद्धियों का अर्थ यह कदापि नहीं लेना चाहिए कि मरे हुए आदमी को जीवित किया जा सकता है या किसी को को धन प्राप्त हो ऐसा उपाय किया जा सकता है। कुछ लोग योग साधना कर यह भ्रम पाल लेते हैं कि उनको तो भारी सिद्धियां मिल गयी। दरअसल योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान करने से मनुष्य की देह तथा इंद्रियों में तीक्ष्णता आती है पर अन्य ज्ञान न होने की वजह से उसका उपयोग अनेक लोग अज्ञानजनित कार्यों में करते के साथ ही अंधविश्वास फैलाने में करते हैं।
पतंजलि महाराज ने योग दर्शन में केवल मनुष्य को स्वयं शक्तिशली और दृढ़ मानसिकता का स्वामी होने का पाठा सिखाया है। योगासन, प्राणायाम तथा मंत्र जाप के बाद जब ध्यान किया जाता है तब वह मनुष्य देह और मन को पूर्णता प्राप्त करता है। उस समय अंतर्मन का निरीक्षण करने से बाहर के विषयों की अनुभूति की जा सकती है। ऐसी जगहों को भी अनुमान किया जा सकता है जहां स्वयं उपस्थित न हों। इतना ही दूसरे व्यक्ति का चेहरा देखकर या उसके शब्द सुनकर उसके मन में चल रही अन्य बातों का भी अनुमान किया जा सकता है। इसके अलावा गर्मी, सर्दी और वर्षा के दौरान अपनी देह को बीमारियों से भी बचाया जा सकता है। जब हम स्वस्थ होते हैं तो हमारी योग्यता और प्रतिभा का प्रवाह स्वत: प्रवाहित होता है जिसे वजह से समाज में सम्मान मिलता है।
------------
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग शब्दलेख सारथि पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.
दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
pranayam,hindu dharma,आध्यात्म,संदेश,ज्ञान,पतंजलि योग विज्ञान,पतंजलि योग विज्ञान,भारतीय आध्यात्म,hindi literature,patanjali yog vigyan,adhyatma, aadhyatma,indian society,hindu parsonal,hindu religion,hindu dharma,patanjali yoga in hindi,dhyan,धार्मिक विचार,हिन्दू धार्मिक विचार,hindi dharmik vichar,dharmik vichar,Religious thought,hindu Religious thought
No comments:
Post a Comment