निर्बेरी निहकामता, स्वामी सेती नेह।
विषया सो न्यारा रहे, साधुन का मत येह।।
विषया सो न्यारा रहे, साधुन का मत येह।।
संत कबीरदास जी का कहना है कि किसी से विवाद न करे, बैर न पाले और किसी विषया या वस्तु में कामना न रखे वहर सच्चे संत हैं। संतों का विषयों से प्रेम नहीं होता बल्कि उनका सारा ध्यान तो परमात्मा की भक्ति पर ही केंद्रित होता है।
मान अपमान न चित्त धरै, औरन का सनमान।
जो कोई आशा करै, उपदेशै तेहि ज्ञान।।
जो कोई आशा करै, उपदेशै तेहि ज्ञान।।
संत कबीर दास का मानना है कि संत लोग मान और अपमान को अपने हृदय में स्थान नहीं देते। वह सभी को सम्मान देते हैं और कोई आशा लेकर आये तो उसका उचित मार्गदर्शन करते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अक्सर लोग सवाल पूछते हैं कि सही गुरु कैसे ढूंढा जाये? ज्ञान तो अनेक कथित संतों ने रट लिया है और वह उसका व्यवसायिक उपयोग अपने प्रवचनों में करते हैं। दक्षिणा लेकर अनेक शिष्य वह बनाते हैं। उनमें अनेक शिष्य बाद में अपने गुरु का व्यवहारिक सत्य देखकर निराश हो जाते हैं। अनेक लोग कथित पेशेवर संतों को देखकर यह भी कहते हैं कि‘ आजकल सच्चे गुरु मिलते कहां हैं? फिर हमें उनकी पहचान भी तो नहीं पता।’
संतों की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह स्थिरप्रज्ञ होते हैं। उनका हृदय केवल भक्ति में लीन रहता है। सांसरिक विषयों में वह निर्लिप्त भाव से सक्रिय रहते हुए मान अपमान का विचार नहीं करते। वह अपशब्द बोलने वाले की बातों को अनसुना कर उनसे भी सद्व्यवहार करते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि वह अपने निष्काम कम के बदले कोई दक्षिणा या उपहार स्वीकार नहीं करते। अतः ऐसे ही लोगों को गुरु मानकर चलना चाहिए।
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संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप',GwaliorEditor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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