‘निरभउ निरंकार सच नाम।
जा का कीआ सगल जहान।।
हिन्दी में भावार्थ-निर्भय निरंकार का नाम ही सच है। उसी परमात्मा का यह पूरा संसार है।
जा का कीआ सगल जहान।।
हिन्दी में भावार्थ-निर्भय निरंकार का नाम ही सच है। उसी परमात्मा का यह पूरा संसार है।
‘सचु पुराणा होवे नाही।’
हिन्दी में भावार्थ-इस संसार में समय के साथ सब वस्तु पुरानी हो जाती है लेकिन प्रभु का नाम कभी भी पुराना नहीं पड़ता।
हिन्दी में भावार्थ-इस संसार में समय के साथ सब वस्तु पुरानी हो जाती है लेकिन प्रभु का नाम कभी भी पुराना नहीं पड़ता।
‘आदि सच जुगादि सच।
है भी सच, नानक होसी भी सच।।
हिन्दी में भावार्थ-परमात्मा का नाम अनेक युगों से सच के रूप में मौजूद है। उसके नाम की शक्ति को कोई चुनौती नहीं दे सकता।
है भी सच, नानक होसी भी सच।।
हिन्दी में भावार्थ-परमात्मा का नाम अनेक युगों से सच के रूप में मौजूद है। उसके नाम की शक्ति को कोई चुनौती नहीं दे सकता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-मनुष्य देह शिशुकाल, बाल्यकाल, युवावस्था तथा वुद्धावस्था से गुजरती हुई अंततः समाप्त हो जाती है पर यह संसार सदैव बना रहता है क्योंकि उसका आधार परमात्मा का संकल्प है। भगवान के नाम स्मरण करने से नित एक नवीन स्फूर्ति अनुभव होती है। हृदय में प्रतिदिन श्रद्धा तथा विश्वास के नाम लेते रहें तब भी ऐसा नहीं लगता कि वह पुराना है।
नित ध्यान, स्मरण तथा सत्संग में रत रहने वालों को परमात्मा का नाम कभी पुराना अनुभव नहीं हो सकता। अनेक लोग यह कहते हैं कि भगवान का नाम तो केवल वृद्धावस्था में लिया जाना चाहिये पर यह उनका वहम है। भगवान का नाम लेने की प्रवृत्ति अगर बचपन में ही नहंी पड़ी तो फिर वृद्धावस्था में भी उसकी आदत नहीं पड़ सकती। देह पुरानी पड़ जाती है पर उसमें विचर रहा मन तो आदतों का दास है। इसलिये अगर प्रारंभ में उसे ध्यान, नाम स्मरण तथा सत्संग का अभ्यास नहीं मिला तो वह बाद में उसके लिये लालायित भी नहीं होता। इसलिये प्रारंभ से ही समय मिलने पर परमात्मा का स्मरण करना चाहिये ताकि बाद में उसके लिये पछताना न पड़े।
-------------संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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1 comment:
सुन्दर प्रस्तुति।आभार।
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