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Saturday, December 19, 2009

श्रीगुरु ग्रंथ साहिब-जिसने दुनियां बनायी वही इसे जानता है (shri guru granth sahib in hindi)

 ‘जा करता सिरठी कउ साजे, आपे जाणै सोई।’

श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार जिस परमपिता परमात्मा ने यह सृष्टि रची है वह इसका आदि और अंत जानता है।

पाताल पाताल लख, आगासा आगास।

ओड़क ओड़क भालि थके वेद कहनि इक वात।।

श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार इस सृष्टि में लाखों पाताल और आकाश हैं।

इसे जानने जानने का प्रयास करते हुए अनेक  विद्वान थककर हार गये।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-दुनियां के वैज्ञानिक हमेशा ही अंतरिक्ष में इस बात की खोज करते हैं कि इस ब्रह्मांड में कहीं अन्य जीवन है कि नहीं।  हमारे भारतीय अध्यात्म ने इस बात की खोज तो पहले ही कर ली है कि इस प्रथ्वी, आकाश और समुद्र के अलावा भी अन्य लाखों सृष्टियां हैं।  यही कारण है कि जहां पश्चात्य विचारधारायें  एक ही ईश्वर की कल्पना करती हैं वहीं भारतीय विचारधारायें उसके अनंत होने की बात कहती हैं।  पश्चिमी विचाराधारायें केवल इस सृष्टि और मनुष्य के भौतिक स्वरूप के आधार पर जीवन दर्शन की व्याख्या प्रस्तुत करती हैं जबकि भारतीय विचाराधारायें अव्यक्त तथा अदृश्य तत्व के प्रभावों का भी अध्ययन कर अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करती हैं।

सच बात यही है कि इंसान की देह में इंद्रियां हैं और उसी से उसका संचालन भी होता है। इन इंद्रियों पर देह के साथ ही उपजी तीन प्रकृतियों मन, बुद्धि और अहंकार का नियंत्रण होता है। ऐसे में जो जीवात्मा इस देह में उसका अध्ययन केवल भारतीय विचारधाराओं में ही किया जाता है। यही कारण है कि हमारे देश का अध्यात्मिक ज्ञान हर दृष्टि से संपूर्ण माना जाता है।  इतना ही नहीं इसमें विज्ञान का भी समावेश है। देह, मन और विचार की स्वच्छता के साथ ही इस सृष्टि की रचना और उसके संचालन का ज्ञान भी हमारे महापुरुषों ने बताया है। जो लोग अपने ही देश की विचाराधाराओं से परिपूर्ण ग्रंथों का अध्ययन करते हैं उनको किसी अन्य प्रकार के ज्ञान और विज्ञान की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
यह अलग बात है कि हमारे देश के नवीनकाल के विद्वान पाश्चात्य विज्ञान की तरफ देखकर अपने विचार कायम करते हैं जबकि पाश्चात्य विद्वान हमारे ही देश की आध्यात्मिक विचारधाराओं पर भी दृष्टिपात करते हुए अपने प्रयोग करते हैं।
 
 
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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