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Monday, November 16, 2009

संत कबीर वाणी- राम का नाम जपने वाले श्रेष्ठ (ram ka nam-sant kabir das)

मासांहारी मानवा, परतछ राछस जान।
ताकी संगति मति करै, होय भक्ति में हान।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि मांसाहार मनुष्य को राक्षसीवृत्ति का स्वामी ही समझना चाहिए। उसकी संगति करने कभी न करें इससे भक्ति की हानि होती है।
मांस खाय ते ढेड़ सब, मद पीवै सो नीच।
कुल की दुरमति परिहरै, राम कहै सो ऊंच।।
संत शिरोमणि कबीरदास का कहना है कि जो मांस खाते हैं वह सब मूर्ख और मदिरा का सेवन करने वाले नीच होते हैं। जिनके कुल में यह परंपराएं हैं उनका त्याग कर जो भगवान श्रीराम का स्मरण करते है वहीं श्रेष्ठ है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-कहा भी जाता है कि ‘जैसा खाये अन्न वैसा हो जाये मन’। श्रीगीता में भी कहा गया है कि ‘गुण ही गुणों को बरतते हैं’। जिस तरह का आदमी भोजन करता है वही तत्व उसके रक्त कणों में मिल जाते हैं। यही रक्त हमारी देह के सभी तरफ बहकर समस्त अंगों को संचालित करता है। उसके तत्व उन अंगों पर प्रभाव डालते हैं। जिस जीव की हत्या की गयी है मरते समय उसकी पीड़ा के अव्यक्त तत्व भी उसके मांस में रह जाते हैं। यही तत्व आदमी के पेट में पहुंच जब अपनी पीड़ा का प्रदर्शन करते हैं जिससे मनुष्य में दिमागी और मानसिक विकृत्तियां पैदा होती है। पश्चिमी वैज्ञानिकों ने भी यह सिद्ध किया है कि मांसाहारी की बजाय शाकाहार मनुष्य अधिक उदार होते हैं।
दूसरी बात यह है कि मांस से मनुष्य की प्रवृत्ति भी मांसाहारी हो जाती है। उसमेें संवेदनशीलता के भाव की कमी आ जाती है। ऐसे लोगों से मित्रता या संगत करने से अपनी अंदर भी विकृत्तियां पैदा हो सकती हैं। अनेक ऐसे परिवार हैं जिसमें मांस भक्षण की परंपरा है पर उनमें में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो शाकाहारी होने के कारण भगवान के भक्त हो जाते हैं। ऐसे लोगों की प्रशंसा की जानी चाहिए।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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