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Thursday, October 15, 2009

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-मित्र की भी होती हैं तीन श्रेणियां (kautilya ka arthshastra in hindi)

मित्राणामन्तरं विद्याण्मध्यज्यायः कनीयसाम्।
मध्यज्यायः कनीयांसि कर्मणि च पृथकपृथक्।।
हिंदी में भावार्थ-
मित्रों की उच्च, मध्य और निम्न कोटि की पहचान करते हुए उनके पृथक पृथक कार्यों का अध्ययन करें।
प्रकाशपक्षग्रहणं न कुर्यात्सुहृदां स्वयम्।
अन्योन्यमत्सजंवषां स्वयमेवाशु धारयेत्।।
हिंदी में भावार्थ-
किसी वाद विवाद में अपने सहृदय और मित्रों का प्रत्यक्ष रूप से पक्ष न लेते हुए उनको गुप्त रूप से सहायता करें।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मित्र बनाने में कभी जल्दी नहीं करना चाहिये। मित्रों भी आम इंसान की तरह तीन श्रेणियां होती हैं-उच्च, मध्यम और निम्न। जिस तरह उच्च मनुष्यों की इस संसार में कमी दिखती है वैसे ही मित्रों कभी है। रोज रोज मिलने वाला हर आदमी मित्र नहीं हो जाता। सच तो यह है कि उस आदमी को बहुत कम धोखा मिलता है जो दोस्त कम बनाता है। वैसे इस समय इंटरनेट का जमाना है और इसलिये अधिक सतर्कता बरतना चाहिये। अभी हाल ही में ऐसे अनेक मामले सामने आये हैं जिसमें इंटरनेट पर लड़कों ने दोस्ती कर अनेक लड़कियों का जीवन बर्बाद कर दिया। इंटरनेट पर किसी का भी फोटो कोई भी लगा सकता है। अपनी आयु कम बता सकता है। अपने व्यवसाय को छिपा सकता है। कहने का तात्पर्य है कि जब सामान्य रूप से निभाने वाला मित्र बड़ी कठिनता से मिलता है तो इंटरनेट पर कहां से मिल जायेगा? इंटरनेट पर सक्रिय लोग कोई आसमानी नहीं है बल्कि इसी समाज से हैं। अतः मित्रों की पहचान कर ही आगे बढ़ना चाहिये।
इसके अलावा वाद विवाद के समय मित्र या सहृदय का सीधे पक्ष लेने की बजाय रणनीति से काम लेते हुए गुप्त रूप से उसकी सहायता करना चाहिये ताकि उसके विरोधी या शत्रु से आप गुप्त रहकर निरंतर उसकी रक्षा कर सकें। इसलिये अपने सहृदय और मित्र की सहायता के लिये उसके विरोधी या शत्रु के सामने किसी ऐसे व्यक्ति को प्रस्तुत करना चाहिये जो आपका सहायक हो और विरोधी या शत्रु उसकी पहचान न कर सके।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com
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1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मित्र की सुन्दर व्याख्या है।
धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

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