अंग अविद्या ऊपजै, जाय हिये ते नाम।
भावार्थ-संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक जीभ स्वाद में गहरे कुएं में पड़ी हुई है तब विष का सेवन करेगी जिससे अविद्या और अज्ञान ही पैदा होकर मनुष्य को परमात्मा के नाम से दूर हो जाता है।
माखी गुड़ में गड़ि रही, पंख रही लपटाय।
तारी पीटै सिर धुनै, लालच बुरी बलाय।
भावार्थ-संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि मक्खी जब गुड़ की लालच में अपने पंख फंसा देती है तब अपने हाथ पांव पटकने और सिर धुनने के बावजूद भी उसकी मुक्ति नहीं होती। लालच वाकई बुरी बला है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-आजकल अनेक ऐसी चीजें लोग खा रहे हैं जो न तो स्वास्थ्य के लिये ठीक हैं न उनसे पेट भरता है। फास्ट फूड को पश्चिमी चिकित्सा विशेषज्ञ ही ठीक नहीं मानते पर हमारे देश में खाने पीने के विषय में अपनी सोच कम जमाने के फैशन पर लोग अधिक चलते हैं। इससे देश में बीमारियां बढ़ी रही हैं। पहले तो वर्षा के दिनों में ही चिकित्सकों के अस्पताल भरे रहते थे पर अब तो उनका व्यवसाय सदाबहार पूरे वर्ष चलने वाला हो गया है। इसके पीछे वातावरण का प्रदूषित होना अकेला कारण नहीं है बल्कि लोगों का खान पान तथा मिलावटी खाद्य पदार्थ उपयोग करना भी है। यह समझने वाली बात है कि दूध इतना महंगा हो गया है तो घी, दही, पनीर और खोवा सस्ता कैसे मिल सकता है? कई जगह दुग्ध पदार्थ नकली या मिलावट कर बेचे जाते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि लोग जानते हुए भी उनको खरीद कर उनका उपभोग करते हैं। ़दूध का महंगा होने के पीछे उसका कम उत्पादन होने के साथ ही पशुओं पर लागत मूल्य अधिक होना है इसलिये उस पर शिकायत नहीं की जा सकती पर इतना तो समझा जा सकता है कि उससे बनने वाले पदार्थ सस्ते नहीं हो सकते पर लोग हैं कि इसके बावजूद ऐसे मिलावटी और नकली पदार्थों का सेवन कर अपने लिये बीमारी मोल लेते हैं। यह जीभ का स्वाद ही है जो हमें बाद में कष्ट देता है। दूध स्वास्थ्य के लिये अच्छा है पर अगर न मिले तो केवल स्वाद के लिये नकली पीकर अपने शरीर को हानि पहुंचाने का कारण कौन समझा सकता है? शरीर दूध न पीने से अधिक स्वस्थ नहीं रहेगा पर मिलावटी या नकली पीने से तो उसकी हानि होगी। रोग प्रतिरोधक क्षमता के अभाव में हमारी देह बीमारी का प्रतिकार नहीं कर पाती-यह सामान्य तथ्य जान लेना चाहिये।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com
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