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Tuesday, October 13, 2009

चाणक्य नीति- ज्ञानी लोग अपनी शक्ति के अनुसार ही गुस्सा करते हैं (chankya niti-takat aur gussa)

नीति विशारद चाणक्य कहते हैं
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प्रस्तावसदृशं वाक्यं प्रभावसदृशं पिय्रम!
आत्मशक्तिसमं कोपं यो जानाति स पण्डितः।
हिंदी में भावार्थ-
जैसा प्रस्ताव देखें उसी के अनुसार प्रभावपूर्ण विचार मधुर वाणी में व्यक्त करे और अपनी शक्ति के अनुसार ही क्रोध करे वही सच्चा ज्ञानी है।
सुसिद्धमौषधं धर्म गृहच्द्रिं मैथुनम्।
कुभुक्तं कुश्रुतं चैव मतिमान्न प्रकाशयेत्।।
हिंदी मे भावार्थ-
बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिऐ कि वह छह बातें किसी को भी न बताये। यह हैं अपनी सिद्ध औषधि, धार्मिक कृत्य, अपने घर के दोष, संभोग, कुभोजन तथा निंदा करने वाली बातें।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-नीति विशारद चाणक्य के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन में वाक्पटु होना चाहिये। समय के अनुसार ही किसी विषय को महत्व को देखते हुए अपना विचार व्यक्त करना चाहिए। इतना ही नहीं किसी विषय पर सोच समझ कर प्रिय वचनों में अपना बात रखना चाहिए। इसके अलावा अपने पास किसी सिद्ध औषधि का ज्ञान हो तो उसे सभी के सामने अनावश्यक रूप से व्यक्त करना ठीक नहीं है। अपने घर के दोष, तथा स्त्री के साथ समागम की बातें सार्वजनिक रूप से नहीं करना चाहिए। इसके अलावा जो भोजन अच्छा नहीं है उसके खाने का विचार तक अपने मन में न लाना ही ठीक है-दूसरे के सामने प्रकट करने से सदैव बचना चाहिए। किसी भी प्रकार के निंदा वाक्य किसी के बारे में नहीं कहना चाहिये।

अगर इतिहास देखा जाये तो वही विद्वान समाज में सम्मान प्राप्त कर सके हैं जिन्होंने समय समय पर कठिन से कठिन विषय पर अपनी बात इस तरह सभी लोगों के के सामने रखी जिसके प्रभाव से न केवल उनका बल्कि दूसरा समाज भी लाभान्वित हुआ। अधिक क्रोध अच्छा नहीं है और जब किसी के बात पर अपना दिमाग गर्म हो तो इस बात का भी ख्याल करना चाहिए कि अपने क्रोध के अनुसार संघर्ष करने की हमारी क्षमता कितनी है। अविवेकपूर्ण निर्णय न केवल हमारे उद्देश्यों की पूर्ति बाधक होते हैं बल्कि उनसे समाज में प्रतिष्ठा का भी हृास होता है। फिर
 नाकामी से आदमी में क्रोध आता है।
संकलक एवं व्याख्याकार -दीपक भारतदीप
http://rajlekh.blogspot.com/
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