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Monday, October 26, 2009

चाणक्य नीति-दुष्ट और कांटों से दूरी बनायें (chankya niti-dusht aur kante)

खलानां कपटकानां च द्विवेधैव प्रतिक्रिया।
उपानंमुखभंगो वा दूरतो वा विसर्जनम्।।
हिंदी में भावार्थ-
दुष्टों और कांटों को दूर करने के दो ही उपाय है या तो जूतों से उनका मुंह कुचल दिया जाये अथवा उन्हें दूर से ही त्याग दे।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सच बात तो यह है कि जिन लोगों की प्रवृत्ति दुष्ट है उनको दूर से त्याग देना चाहिए। आजकल के समय तो दुष्ट लोगों को न केवल समाज का उच्च वर्ग ही समर्थन देता है बल्कि सामान्य लोग भी उससे लड़ने में डरते हैं। फिर आजकल नियम भी ऐसे है कि हिंसा करना परेशानी का कारण हो सकता है। इसलिये अच्छा यही है कि दुष्टों को दूर से ही नमस्कार कर चलते बने। उनके साथ आत्मीय संबंध बनाकर अपनी सुरक्षा का विचार करना निहायत बेवकूफाना है।

महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस को पूर्ण करने के लिये दुष्टों से भी प्रार्थना की थी। उनसे सबक यही निकलता है कि जहां तक हो सके दुष्ट लोगों से अपनी दूरी बना लें। जहां तक उनको जूते मारने वाली बात है तो आजकल अर्थ के सारे स्त्रोत दुष्टों के घर भी वैसे हैं जैसे सज्जनों के पास। यह जूता मारना दंडनीति का परिचायक है जिसका उपयेाग अपने से कमजोर व्यक्ति पर किया जाता है। चूंकि आजकल दुष्ट न केवल धनार्जन बड़ी मात्रा में कर लेते हैं बल्कि समाज भी उनको सम्मान देता है इसलिये उनसे दूर रहना भी अपनी सुरक्षा का सबसे बढ़िया उपाय है। वैसे देखा जाये तो आजकल दुष्ट ही दुष्ट से लड़कर नष्ट भी हो जाते हैं। इस पूरे विश्व की हालत ऐसी है कि सज्जन के पास इसके अलावा कोई उपाय नहीं है कि वह दुष्टों से दूर रहकर अहंकार वश होने वाले उनके संघर्षों को देखे।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com
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