अनेक बुंद खाली गये, तिनका नहीं विचार।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि एक बूंद से इस जीव की रचना होती है और उसी के चले जाने पर सारा संसार रोता है। अनेक बूंदें खाली गयी उसका विचार नहीं करता।
आंखि न देखि बावरा, शब्द सुनौ नहिं कान।
सिर के केस उज्जल भये, अबहूं निपट अज्ञान।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि इंसान बावरा होकर जीता है। न उसकी आंख कुछ देखती है न कान सुनते हैं। सिर के बाल सफेद हो जाने पर भी वह अज्ञानी बना रहता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे अध्यात्मिक ज्ञानी महापुरुष न केवल भक्ति का उपदेश देते हैं पर उसके साथ विज्ञान का भी कराते हैं यह बात कबीरदास जी के संदेशों से स्पष्ट हो जाती है। पश्चिमी विज्ञान अब बता रहा है कि एक पुरुष करोड़ों बूंदें वीर्य की छोड़ता है उसमें से कोई एक बूंद स्त्री के गर्भ में स्थापित होती है शेष व्यर्थ चली जाती हैं। कितने आश्चर्य की बात है कि संत कबीरदास जी के काल में भारतीय इस बात को जानते थे। इस एक बूंद से ही जीव की रचना होती है और उसके जन्म पर खुशी तथा निधन पर लोग शोक मनाते हैं। यह हंसने की बात है कि एक बूंद जिसे अधिक जीवन मिला और शेष क्षण मात्र में नष्ट हो गयी पर जिनको अधिक जीवन मिला उसके लिये प्रसन्नता व्यक्त करने और रोने वाले बहुत हो जाते हैं। जीवन तो उन बूंदों में भी होता है जो क्षण मात्र में नष्ट हो जाती हैं पर वह दृश्यव्य नहीं है उनके लिये कौन रोता या हंसता है?
इतना अद्भुत तत्वज्ञान हमारे अध्यात्म में भरा हुआ है जिसे सुनकर आज हम इसलिये हतप्रभ रह जाते हैं क्योंकि एक योजनाबद्ध ढंग से उसे हमसे दूर रखा जाता है। इस बूंद से बनने वाले जीवन में भी मौजूद जीव न पैदा होता और न मरता है-इस मान्यता के कारण हमारे यहां जन्मतिथि और पुण्यतिथि मनाने की कोई आधिकारिक परंपरा नहीं है पर आजकल ऐसे लोग भी जन्म और पुण्यतिथि कार्यक्रम मनाते हैं जो दावा करते हैं कि वह भारतीय अध्यात्म के कट्टर समर्थक हैं। इस तरह की अज्ञान से भरपूर परंपरायें हमारे देश में खूब चल रही हैं। श्रीगीता में भी प्रथम अध्याय में श्री अर्जुन ने अपना विषाद भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष प्रस्तुत किया था जिसमें कहा था कि जब पूरा कुनबा ही खत्म हो जायेगा तब हमारे पितरों के लिये तर्पण कौन करेगा। श्री कृष्ण जी ने उनके सारे विषादों को भ्रम बताते हुए श्री गीता का ज्ञान दिया था। इसके बावजूद कर्मकांडों के नाम पर हमारे यहां श्राद्ध के साथ जन्मतिथि और पुण्यतिथि मनाये जाते हैं। इस अज्ञानजनित कार्य में ऐसे कथित संत भी लिप्त मिलते हैं जो यह दावा करते हैं कि उन्होंने तपस्या से भगवान का दर्शन किया है। इनमें कई बूढ़े हो गये हैं और अपनी आरती भक्तों से करवाते हैं। सच बात तो यह है कि उन लोगों को लिये अध्यात्मिक ज्ञान सुनाना एक व्यवसाय है जबकि वस्तुतः होते तो वह सामान्य आदमी की तरह अज्ञानी हैं जिसकी आंखें हैं पर देखती नहीं और कान शब्द सुनते हुए भी अनसुना कर जाते हैं।
..............................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
No comments:
Post a Comment