पीडितोऽपि हि न मेघावीन्तां वाचमुदीरयेत्।।
हिंदी में भावार्थ-क्रूर वाणी से हर आदमी का मन त्रस्त हो जाता है इसलिये विद्वान लोगों को चाहिए कि वह कठोर वाणी न बोलें। भले ही अन्य लोग अपनी कठोर वाणी से संताप देते रहें।
अनिन्दापरकृत्येषु स्वधम्र्मपरिपालनम्।
कृपणेषु दयालुत्वं सव्र्वत्र मधुरा गिरः।।
हिंदी में भावार्थ-दूसरे के कार्य की निंदा न करते हुए अपना धर्म पालन करना , दीनों पर दया करना तथा मीठे वचनों से दूसरों को तृप्त करना ही धर्म है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-इस दुनियां में प्रचलित अनेक धर्मों की व्याख्या करती हुई अनेक किताबें मौजूद हैंे पर फिर भी अशांति व्याप्त है। कहीं आतंकवाद है तो कहीं युद्ध की आशंकायें। इसके अलावा लोगों के अंदर मानसिक तनाव की ऐसी धारा प्रवाहित हो रही है जिससे किसी की मुक्ति नहीं है। दरअसल धर्म के नाम सभी जगह भ्रम फैलाया जा रहा है। कहने को तो कहा जाता है कि हिन्दू धर्म है पर वास्तव में यह एक जीवन शैली है। वैसे हिन्दू धर्म के नाम पर कर्मकांडों का प्रचार भी भ्रम से कम नहीं है। धर्म का मूल स्वरूप इतना बड़ा और कठिन नहीं है जितना बताया जाता है। धर्म से आशय यह है कि हम मनुष्य हैं और न केवल अपनी देह का पालन करें बल्कि दूसरों की भी सहायता करें, किसी को कष्ट न पहुंचायें। सभी को अपनी मधुर वाणी से प्रसन्न करते हुए अपनी मनुष्य यौनि का का आनंद उठायें।
मगर इसके विपरीत धर्म के नाम पर भ्रम का प्रचार करने वाले लोगों की कमी नहीं है, जो यह बताते हैं कि कर्मकांड करने पर स्वर्ग मिलता है। कई तो ऐसे भी हैं जो बताते हैं कि यह खाओ, यह पहनो, इस तरह चलो तो स्वर्ग मिलेगा। स्वर्ग की यह कपोल कल्पना आदमी की बुद्धि को बंधक बनाये रखती है और धर्म के ठेकेदार अपने इन्हीं बंधकों के सहारे राज्य कर रहे हैं। कई तो ऐसे भी हैं जो अपने धर्म का राज्य लाने के लिये प्रयत्नशील हैं तो कुछ ऐसे है जो तमाम तरह की किताबों से ज्ञान उठाकर बताते हैं कि उनका धर्म श्रेष्ठ है। सच तो यह है कि धर्म से आशय केवल इतना ही है कि अपने कर्तव्यों का पालने करते हुए दूसरे पीड़ितों की भी मदद करें। हमेशा ही मधुर वाणी में बोलें और यह सिद्ध करें कि आपको परमात्मा ने जो जिव्हा दी है उसका आप सदुपयोग कर रहे हैं।
दूसरे की निंदा कर अपने को श्रेष्ठ साबित करना या कड़े शब्दों का उपयोग कर किसी को दुःख देना तो बहुत आसान है मुश्किल तो दूसरे को खुश करने में आती है जो कि धर्म का सबसे बड़ा परिचायक है।
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