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Tuesday, September 8, 2009

मनुस्मृति-दीमक की तरह धीरे धीरे लक्ष्य की तरफ बढ़ें (manu smriti-slogly ahead in the life)

धर्म शनै संचनुयाद्वल्मीकमिव पुत्तिकाः।
परलोक सहायार्थ सर्वभुतान्यपीडयन्ः।।
हिंदी में भावार्थ-
जिस तरह दीमक अपने निवास के निर्माण के लिये धीरे धीरे बंाबी बनाती है उसी तरह परलोक में अपना जीवन सुधार हेतु किसी अन्य जीव को कष्ट पहुंचाये बिना पुण्य कर्मों का संग्रह करना चाहिये।
दृढ़कारी भृदुदन्तिः क्रूराचारैरसंवसन्।
अहिंस्त्रों दमदानाभ्यां ज्येत्स्वर्ग तथावतः।।
हिंदी में भावार्थ-
दृढ़ निश्चय, स्वभाव से दयालु तथा आत्मसंयम रखने व्यक्ति ही स्वर्ग का अधिकारी बनता है अर्थात इस लोक में उसकी कीर्ति मरने के बाद भी बनी रहती है और वह स्वर्ग का अधिकारी भी बनता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अपने जीवन में सफलता बहुत जल्दी पाने की उतावली सभी को होती है। आज के कंप्यूटर युग में हर कोई आगे बढ़ने के लिए संक्षिप्त मार्ग अपनाना चाहता है। चाहे जीवन में कामयाबी हो या स्वर्ग पाने का मोह हर आदमी यही सोचता है कि वह ऐसा काम करे जिससे आसानी से उसको लक्ष्य प्राप्त हो जाये।
दीमक अपने रहने के लिये बहुत धीरे धीरे घर बनाती है। उसी तरह सामान्य मनुष्य को जीवन में सफलता पाने के लिये संघर्ष करना पड़ता है। हमारे यहां खरगोश और कछुए की कहानी भी सुनाई जाती है। उसने यह जानते हुए भी खरगोश की चुनौती स्वीकार की कि वह तेज दौड़ता है। उसका विचार सही निकला खरगोश को अति आत्मविश्वास ले डूबा। जिसे पैतृक रूप से पैसा, पद और प्रतिष्ठा विरासत में नहीं मिली उसे तो इस बात का विचार भी नहीं करना चाहिये कि सभी कुछ जल्दी मिल जाये। एक आम व्यक्ति के रूप में हमेशा धीरे धीरे ही अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते हुए जाने की सोचना ही अच्छा है। अगर सफलता के लिये उतावलापन दिखायेंगे तो नाकामी मिलेगी या फिर दूसरों के दबाव में गलत मार्ग का अनुसरण करना पड़ेगा।
यह धैर्य केवल जीवन में सफलता के लिये ही नहीं वरन् परलोक में अपना स्तर सुधारने के लिये भी आवश्यक है। याद रखिये दृढ़ निश्चय, अहिंसा और दया ही वह मार्ग है जिससे न केवल जीवन में सफलता मिलती है बल्कि उससे देह विसर्जन के बाद भी कीर्ति बनी रहती है। जिसने यहां लोगों के हृदय जीत लिये समझो स्वर्ग जीत लिया।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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