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Thursday, September 10, 2009

चाणक्य नीति-कौए से सीखें जागरुकता (kauva aur jagrukta-chakyna niti)

गूढ़मैथुनचरित्वं च काले काले संग्रहम्।
अप्रमत्तमविश्वासं पंच शिक्षेच्च वायसात्।।
हिंदी में भावार्थ-
छिपकर मैथुन करना, ढीठपना दिखाना, नियत समय पर संग्रह करना तथा सदैव प्रमादरहित होकर जागरुक रहना तथा किसी पर विश्वास न करना-यह पांच गुण कौए से सीखना चाहिए।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे के बोलों की तर्ज पर आजकल लोग अपनी यौन क्रीड़ाओं की खुलेआम चर्चा कर गौरव की अनभूति करते हैं। अगर कानूनी बंदिश न हो तो शायद लोग सरेआम ही वह सारे कार्य करने लगें जिनको पर्दे के पीछे करना ही उचित है।
कहा जाता है कि कौआ स्याना पक्षी है। किसी भी स्याने मनुष्य को कौआ कहकर संबोधित किया जाता है। एक तरह से कहा जाये कि लोग कौए को हिकारत की दृष्टि से देखते हैं जबकि उसी से सीखने लायक बहुत कुछ है।
जिस ढीठपन को हम कौए का दुर्गुण समझते हैं वह उसका गुण है क्योंकि वह अपने चरित्र और खानपान पर दृढ़ रहता है। समय आने पर संचय भी करता है। उसे जाल में फंसाना मुश्किल माना जाता है।
इसके विपरीत हम अपने समाज को देखें कि पश्चिम द्वारा प्रदत्त प्रमाद और विलासिता के साधनों में अपना मन फंसा कर हम अपना स्वविवेक खो बैठे हैं। कौआ प्रमाद में न फंसकर हमेशा जागरुक रहता है जबकि हमारे देश में प्रमाद का इतना बोलाबाला है कि लगता ही नहीं कि लोग सतर्क और जागरुक हैं। अपराध इसलिये नहीं बढ़े कि प्रशासन सतर्क नहीं है बल्कि लोग जागते हुए भी सुप्तावस्था में रहते हैं। यही हाल स्त्रियों के प्रति बढ़े अपराधों का है। उनके खिलाफ बढ़ती हिंसा असावधानियों के कारण अधिक है। सच बात तो यह है कि हमारा समाज अपनी कर्मण्यता और सुप्तावस्था की वजह से ही भारी संकट में फंस गया है। हमारे अंदर प्रमाद और विलासिता की जो भावना है उसकी वजह से ही विदेशी बैंकों की जमा राशि बढ़ रही है। एक तरह से हम आर्थिक गुलाम बन गये हैं।
देश में कौवों की संख्या कम होती जा रही है। ऐसा लगता है कि उनकी कमी से हमारे देश में सतर्कता और जागरुकता के गुणों की कमी हुई है। वह शायद चलते फिरते और उड़ते हुए यहां अपने गुणों का विर्सजन करते थे। संभवतः कौओं को देखकर इंसान इसलिये ही हिकारत की दृष्टि से देखते हैं क्योंकि तब उनको अपनी विलासिता और मानसिक कमजोरी का अहसास होता है। उनको लगता है कि जैसे वह उनको मीठी नींद से जगा रहा है। हां, यह भी सच है कि आदमी को सोना ही अच्छा लगता है चाहे वह शारीरिक रूप से हो या मानसिक रूप से।
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