समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Saturday, April 18, 2009

चाणक्य नीतिः नदी किनारे स्थित वृक्ष शीघ्र नष्ट हो जाते हैं (chankya niti)

नदी तीरे च ये वृक्षाः परगृहेषु कामिनी।
मन्त्रिहीनश्चय राजानः शीघ्रं नश्चाननसंशयम्

हिंदी में भावार्थ-नदी के किनारे वृक्ष, दूसरे के घर रहने वाली स्त्री, मंत्री के बिना राजा शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।
निर्धनं पुरुषं वेश्या प्रजा भग्नं नृपं त्यजेत्।
खग चीतफल वृक्षं भुक्त्वा चाऽभ्यागता गृहम्।।

हिंदी में भावार्थ-निर्धन पुरुष को वैश्या, पराजित और शक्तिहीन राजा को प्रजा, फलहीन वृक्ष को पक्षी जिस तरह त्याग देते हैं उसी तरह भोजन करने के बाद अतिथि को गृहस्थ का त्याग कर देना चाहिये।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अपने जीवन के लक्ष्य और कार्य पर स्वयं ही निर्भर रहना चाहिये। यह सही है कि अपने अनेक कार्यों के लिये दूसरों की सहायता की आवश्यकता होती है पर उस समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि अपनी निर्भरता किसी एक व्यक्ति की बजाय अनेक पर हो ताकि एक अगर सहायता न तो दूसरा कर दे। अपने कार्य तथा उद्देश्य की पूर्ति के सदैव स्वयं ही विचार करते हुए सक्रिय रहना चाहिये। दूसरों निर्भर रहने से जीवन में असफलता की आशंका बलवती होती है।

परिवार समाज और राष्ट्र के मुखिया को सदैव अपनी शक्ति और अर्थ का संचय करते रहना चाहिये। जहां उसकी शक्ति में शिथिलता आने के साथ ही धनाभाव घेर लेता है वहां उसके अंतर्गत सक्रिय अन्य लोग ही नहीं वरन् स्वजन ही उसका त्याग कर देते हैं। अपनी शक्ति और संपन्नता बनाये रखने के लिये अपने गुणों और दुर्गुणों पर निरंतर दृष्टिपात करते हुए आत्म मंथन करते हुए नये प्रयोग करते रहने से शक्ति अर्जित होती है और साथ में अपने प्रति लोगों में नवीनता का भाव बनाये रखा जा सकता है। वैसे आयु अनुसार शक्ति और समयानुसार धन का हृास होता है पर गुणवान और ज्ञानी लोग अपने अभ्यास से इसका आभास किसी को नहीं होने देते जिससे उनकी शक्ति यथावत रहती है।
................................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्द योग
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

2 comments:

रवीन्द्र प्रभात said...

अच्छी जानकारी , आपका आभार !

Anil Kumar said...

शक्ति है तो सब कुछ, नहीं तो सब मिट्टी!

विशिष्ट पत्रिकायें