समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Wednesday, April 15, 2009

चाणक्य नीतिः मनुष्य अपने कर्म के लिये अकेला ही उत्तरदायी होता है

जन्ममृत्यु हि यात्येको भुनक्त्येकः शुभाऽशुभम्।
नरकेषु पतत्येक एको याति परां गतिम्।।

हिंदी में भावार्थ-मनुष्य अकेला ही जन्म लेकर मुत्यु को प्राप्त होता है। अपने हाथ से ही अकेले शुभ अशुभ कर्म करता है और अपने पाप पुण्य का फल अकेले ही भोगता और मोक्ष प्राप्त करता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-जन्म के साथ ही मनुष्य के अनेक प्रकार के संबंध स्थापित होते हैं और मृत्यु के साथ ही बिखर जाते हैं। मनुष्य जन्म से स्थापित इन्हीं संबंधों को सत्य मानकर उनके इर्दगिर्द घूमते हुए परमात्मा की भक्ति से जीवन भर विरक्त रहता है। वह अपने लिये जीवन का सुख केवल इन्हीं संबंधों में ढूंढता है जो कभी नहीं मिलता। कहीं दायित्व तो कहीं अधिकार के नाम पर मनुष्य जीवन भर इन संबंधों में लिप्त रहता है पर उसे मिलता कुछ नहीं है कभी तो उसके लिये यह संबंध तनाव का कारण भी बनते हैं।
अपने परिवार के आहार विहार के लिये मनुष्य हर तरह के कर्म करता है। कहीं शिष्टाचार तो कहीं भ्रष्टाचार करने के लिये तत्पर मनुष्य यह नहीं जानता कि उसके फल और कुफल के लिये वह स्वयं जिम्मेदार होगा। महर्षि बाल्मीकि का चरित्र सभी जानते हैं। वह एक दस्यु के रूप में अपने परिवार वालों के लिये कमाई करते थे। एक बार जब उन्होंने कुछ साधुओं को पकड़ लिया और उन्होंने उनसे कहा कि ‘अपने परिवार के सदस्यों से पहले पूछकर आओ कि क्या तुम्हारे कुफल में वह भागीदार बनेंगे।
महर्षि बाल्मीकि ने जब अपने परिवार के सदस्यों से उक्त प्रश्न किया तो सभी ने उनको ‘ना’ में उत्तर दिया। वहां से उनको ऐसा ज्ञान प्राप्त हुआ कि उन्होंने रामायण जैसा महाग्रंथ रच डाला और उनका नाम आज भी जाना जाता है। यह कथा इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य अपने कर्म के लिये स्वयं ही जिम्मेदार होता है।
.......................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्द योग
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

2 comments:

prabhat gopal said...
This comment has been removed by the author.
prabhat gopal said...

ek behtar aalekh

विशिष्ट पत्रिकायें