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Thursday, January 15, 2009

भर्तृहरि संदेशः मदद कर उसका प्रचार न करें

पद्माकरं दिनकरो विकची करोति
चन्द्रो विकासयति कैरवचक्रवालम्
नाभ्यर्थितो जलधरोऽपि जलं ददाति
संत स्वयं परहिते विहिताभियोगाः


हिंदी में आशय-बिना याचना किये सूर्य नारायण संसार में प्रकाश का दान करते है। चंद्रमा कुमुदिनी को उज्जवलता प्रदान करता है। कोई प्रार्थना नहीं करता तब भी बादल वर्षा कर देते हैं। उसी प्रकार सहृदय मनुष्य स्वयं ही बिना किसी दिखावे के दूसरों की सहायता करने के लिये तत्पर रहते हैं।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-समाज सेवा करना फैशन हो सकता है पर उससे किसी का भला होगा यह विचार करना भी व्यर्थ है। टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में समाज सेवा करने का समाचार आना एक विज्ञापन से अधिक कुछ नहीं होता। कैमरे के सामने बाढ़ या अकाल पीडि़तों को सहायता देने के फोटो देखकर यह नहीं समझ लेना चाहिये कि वह मदद है बल्कि वह एक प्रचार है। बिना स्वार्थ के सहायत करने वाले लोग कभी इस तरह के दिखावे में नहीं आते। जो दिखाकर मदद कर रहे हैं उनसे पीछे प्रचार पाना ही उनका उद्देश्य है। इससे समाज का उद्धार नहीं होता। समाज के सच्चे हितैषी तो वही होते हैं जो बिना प्रचार के किसी की याचना न होने पर भी सहायता के लिये पहुंच जाते हैं। जिनके हृदय में किसी की सहायता का भाव उस मनुष्य को बिना किसी को दिखाये सहायता के लिये तत्पर होना चाहिये-यह सोचकर कि वह एक मनुष्य है और यह उसका धर्म है। अगर आप सहायता का प्रचार करते हैं तो दान से मिलने वाले पुण्य का नाश करते हैं।
कहते हैं कि दान या सहायता देते समय अपनी आँखें याचक से नहीं मिलाना चाहिए क्योंकि इससे अपने अन्दर अंहकार और उसके मन में कुंठा के भाव का जन्म होता है। दान या सहायता में अपने अन्दर इस भाव को नहीं लाना चाहिए कि "मैं कर रहा हूँ*, अगर यह भाव आया तो इसका अर्थ यह है कि हमने केवल अपने अहं को तुष्ट किया।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

निर्मला कपिला said...

satya bachan aur sunder abhivykti ke liye bdhaai

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