जो पै बोवै भूनिके, फूलै फलै अघाय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि साधुओं की संगति कभी भी व्यर्थ नहीं जाती और उसका समय पर अवश्य लाभ मिलता है। जैसे बीज भूनकर भी बौऐं तो तो खेती लहलहाती है।
कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय
खीर खीड भोजन मिलै, साकट संग न जाय
संत कबीर दास जी कहते हैं कि साधु की संगत में अगर भूसी भी मिलै तो वह भी श्रेयस्कर है। खीर तथा तमाम तरह के व्यंजन मिलने की संभावना हो तब भी दुष्ट व्यक्ति की संगत न करें।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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1 comment:
कबीर पर लेखन तलवार की धार पर चलना है !अर्थ के साथ इस पर अपने विचार भी रखें तो और भी सार्थक होगा !आपके सत्प्रयास के लिए शुभकामनाएं !आगे और भी ऐसे विषयों पर लिखते रहें !
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