काचा सेमती मिलत ही, है तन धन की हान
संत शिरामणि कबीरदास जी कहते हैं कि जिनका आचरण और विचारों में परिपक्वता नहीं है उनसे मत मिलो भले ही वह अच्छी वेषभूषा धारण करते हों। ऐसे लोगों के साथ संपर्क रखने से तन और धन की हानि होती है।
ऊचे कुल की जनमिया, करनी ऊंच न होय
कनक कलश मद सों, भरा साधु निन्दा सोय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि केवल ऊंचे कुल में उत्पन्न होने से मनुष्य के कर्म ऊंचे नहीं हो जाते। सोने का कलश यदि मदिरा से भरा हो तो भी साधु लोग उसकी निंदा करते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-संत कबीरदास जी समाज में व्याप्त आडम्बरों के विरुद्ध तो थे ही वह लोगों में नैतिक आचरण का भाव जगाने के लिये भी प्रयत्नशील थे। उन्होंने समाज मेंजाति और धर्म के नाम पर बने समूहों की कार्य पद्धति को देखा था जिसमें हर व्यक्ति का अपने और अपनी जाति पर अहंकार था जिसके कारण समाज उस समय भी विकास की धारा में नहीं चल पाया। उन्होंने अपने संदेशों में स्पष्ट कहा है कि जन्म के आधार पर कोई आदमी श्रेष्ठ नहीं हो जाता। जिसके कर्म अच्छे हैं वही श्रेष्ठ है। हालांकि यह आश्चर्य की बात है कि कबीर दास जी के संदेशों को मानते थे बहुत लोग हैं पर अपने परिवार और जात के अहंकार से मुक्त नहीं हो पाते।
--------------------------
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
सत वचन
Post a Comment