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Tuesday, August 19, 2008

रहीम के दोहे:छाहँ देने वाले बड़े पेड़ अब कहाँ होते हैं

रहिमन अब वे बिरछ कहं जिनकी छांह गंभीर

बागन बिच बिच देखिअत, सेंहुड, कुंज करीर

कवीवर रहीम कहते हैं की अब इस संसार रुपी बैग में अब वह वृक्ष कहाँ है जो घनी छाया देते हैं। अब तो इस बगीचे में सेमल और घास फूस के ढेर या करील के वृक्ष ही दिखाई देते हैं।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-हम कहते हैं कि ज़माना बहुत खराब हैं पर देखें तो यह केवल हमारा एक नजरिया है। इस कलियुग में तो झूठे और लघु चरित्र के लोगों का बोलबाला है। रहीम जी के समय तो फिर भी सात्विक भाव कुछ अधिक रहा होगा पर अब तो स्थिति बदतर है।

पहले तो लोग दान -पुण्यके द्वारा समाज के गरीब तबके पर दया करते थे और अन्य भी तमाम तरह की समाज सेवा करते थे। आपने देखा होगा कि अनेक धर्म स्थलों पर तीर्थ यात्रियों के लिए धर्मशालाएं बनीं हैं जो अनेक तरह के दानी सेठों और साहूकारों ने बनवाईं पर आज उन जगहों पर फाईव स्टारहोटल बन गए हैं। कहने का तात्पर्य अब वह लोग नहीं है जो समाज को अपने पैसे, पद और प्रतिष्ठा से छाया देते थे। अगर कुछ लोग दानवीर या दयालू बनने का दिखावा करते हैं तो उनके निज स्वार्थ होते हैं। ऐसे लोगों से सतर्क रहने की जरूरत है।

1 comment:

seema gupta said...

अगर कुछ लोग दानवीर या दयालू बनने का दिखावा करते हैं तो उनके निज स्वार्थ होते हैं। ऐसे लोगों से सतर्क रहने की जरूरत है।
" rightly said, great article to read"

Regards

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