तो काधों केहि मानतो, आप बढ़ाई साथ
कविवर रहीम कहते हैं कि यदि परमात्मा ने मनुष्य को अपना भाग्य स्वयं लिखन की शक्ति दी होती तो जाने क्या होता? सभी अपनी महिमा बढ़ाने करने का प्रयास करते और कोई किसी को नहीं मानता।
जो रहीम मन हाथ है, तो तन कहुं किन जाहिं
ज्यों जल में छाया परे, काया भीजत नाहिं
कविवर रहीम कहते हैं कि यदि मन अपने वश में है तो चाहे जहां जायें उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। चाहे कोई कितना भी प्रेरित करे अगर मन पर नियंत्रण है तो कोई बुरे मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित नहीं कर सकता।
संपादकीय व्याख्या-मनुष्य की पहचान उसके मन से ही है। वह उसका संचालन करता है और मनुष्य को स्वयं ही चलने का भ्रम होता है। परमात्मा ने मन की गति को बहुत तीव्र बनाया है पर मनुष्य की देह की शक्ति को सीमित रखा है अगर वह ऐसा नहीं करता तो इस पूरी दुनियां में सिवाय खून खराबे के कुछ नहीं होता। मनुष्य को अपनी नियति तय करने की शक्ति नहीं है तब यह हाल है कि अहंकार को त्यागने को तैयार नहीं होता अगर होती तो वह सिवाय अपने किसी को सहन नहीं करता।
जो मनुष्य अपने मन पर नियंत्रण करते हैं वह आत्मसंयम के साथ जीवन सुख पूर्वक व्यतीत करते हैं पर जो अनियंत्रित गति के साथ दौड़ रहे मन के साथ चलने का प्रयास करते हैं उनको भारी कष्ट उठाने पड़ते हैंं। दुर्घटनाओं का भय तो लगा ही रहता है। मन के मार्ग में भला कोई आता है पर देह का मार्ग में तो अन्य देह और वाहन आ जाते हैं और उनसे टक्कर होने की आशंक रहती है।
दीपक भारतदीप, संकलक एवं संपादक
1 comment:
व्याख्या के लिए आभार.
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