समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Tuesday, July 22, 2008

रहीम के दोहेःमन पर नियंत्रण हो तो चिंता की बात नहीं

जो रहीम होती कहूं, प्रभू गति अपने हाथ
तो काधों केहि मानतो, आप बढ़ाई साथ

कविवर रहीम कहते हैं कि यदि परमात्मा ने मनुष्य को अपना भाग्य स्वयं लिखन की शक्ति दी होती तो जाने क्या होता? सभी अपनी महिमा बढ़ाने करने का प्रयास करते और कोई किसी को नहीं मानता।

जो रहीम मन हाथ है, तो तन कहुं किन जाहिं
ज्यों जल में छाया परे, काया भीजत नाहिं


कविवर रहीम कहते हैं कि यदि मन अपने वश में है तो चाहे जहां जायें उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। चाहे कोई कितना भी प्रेरित करे अगर मन पर नियंत्रण है तो कोई बुरे मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित नहीं कर सकता।

संपादकीय व्याख्या-मनुष्य की पहचान उसके मन से ही है। वह उसका संचालन करता है और मनुष्य को स्वयं ही चलने का भ्रम होता है। परमात्मा ने मन की गति को बहुत तीव्र बनाया है पर मनुष्य की देह की शक्ति को सीमित रखा है अगर वह ऐसा नहीं करता तो इस पूरी दुनियां में सिवाय खून खराबे के कुछ नहीं होता। मनुष्य को अपनी नियति तय करने की शक्ति नहीं है तब यह हाल है कि अहंकार को त्यागने को तैयार नहीं होता अगर होती तो वह सिवाय अपने किसी को सहन नहीं करता।

जो मनुष्य अपने मन पर नियंत्रण करते हैं वह आत्मसंयम के साथ जीवन सुख पूर्वक व्यतीत करते हैं पर जो अनियंत्रित गति के साथ दौड़ रहे मन के साथ चलने का प्रयास करते हैं उनको भारी कष्ट उठाने पड़ते हैंं। दुर्घटनाओं का भय तो लगा ही रहता है। मन के मार्ग में भला कोई आता है पर देह का मार्ग में तो अन्य देह और वाहन आ जाते हैं और उनसे टक्कर होने की आशंक रहती है।
दीपक भारतदीप, संकलक एवं संपादक

1 comment:

Udan Tashtari said...

व्याख्या के लिए आभार.

विशिष्ट पत्रिकायें