1.कोई भी काम प्रारंभ करने के बाद घबड़ाना नहीं चाहिए और उसे मध्य में नहीं छोड़ना चाहिए। कर्म करने ही इस दैहिक जीवन के सबसे अधिक पूजा है। जो प्राणी काम करते हैं वही सदा सुखी रहते हैं।
2. धन की हानि, मन की अशांति और संदेह के बारे में अन्य लोगों को नहीं बताना चाहिये क्योंकि इससे मजाक बनता है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-विश्व में अशांति का मुख्य कारण यही है कि लोग शारीरिक श्रम को हेय समझने लगे हैं। अपने शरीर का अधिक से अधिक आराम देने के लिये लोगों मशीनों पर निर्भर होते जा रहे हैं। इससे व्यक्ति, परिवार और समाज में जो वैमनस्य और तनाव फैल रहा है उसका अनुमान किसी को नहीं है। एक तरफ श्रम न करने से शरीर से विकार निकालने वाला पसीना बाहर नहीं आता उससे शरीर को रोग घेर लेते हैं दूसरे शारीरिक श्रम करने वाले लोगों को यह लगता है कि उनका समाज में कोई सम्मान नहीं है इसलिये वह आत्मग्लानि की अग्नि मेंं जलते हैं और अपने से धनी आदमी की सहायता के लिये आगे नहीं आते हैं। देखा जाये तो राष्ट्र और समाज की रक्षा के लिये जो श्रमिक और गरीब व्यक्ति अपनी शारीरिक शक्ति से रक्षा करने में समर्थ है वह क्षुब्ध है यही कारण है कि हम अपने आसपास ऐसे खतरों को देख रहे हैं जिनका सामना केवल शक्ति के सहारे ही किया जा सकता है। इसलिये न केवल स्वयं ही शरीर से श्रम करना चाहिए बल्कि जो शारीरिक श्रम कर रहे हैं उनका भी सम्मान करना चाहिए।
अक्सर लोग यह सोचते हैं कि अपने मन का बोझ किसी से कहने पर मन हल्का हो जाता है पर होता इसका उल्टा ही है। सभी लोग कष्ट झेलते हैं पर कुछ लोग कहने की बजाय दूसरों के कष्ट का मजाक उड़ाकर ही दिल को तसल्ली देते हैं। ऐसे में अगर कोई सज्जन पुरुष यह सोचता है िक अपना कष्ट दूसरे को बताने से संतोष मिल जायेगा तो उसे यह भ्रम दूर कर लेना चहिए।
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2 comments:
सुन्दर वचन लिखे हैं और व्याख्या भी अच्छी की है।
"कोई भी काम प्रारंभ करने के बाद घबड़ाना नहीं चाहिए और उसे मध्य में छोड़ना चाहिए।"
लगता है आप एक "नहीं" लगाना भूल गये! लेकिन लेख पसंद आया!
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