न हीदृशमनायुष्य्र लोके किञ्चन विद्वते।
यादृशं पुरुषस्येह परदारोपसेवनम्
हिंदी में भावार्थ- किसी दूसरे की स्त्री के साथ संपर्क करने जैसा कोई निकृष्ट कर्म नहीं है, उससे व्यक्ति की आयु कम हो जाती है। इसलिये पुरुषों का इस तरह की प्रवृत्ति से दूर ही रहना चाहिए।
नात्मानमवमन्येत पूर्वाभिरसमृद्धिभिः
आमृत्योः श्रियमन्विच्छेन्नैनां मन्येत दुर्लभाम्
हिंदी में भावार्थ-अपनी समृद्धि के लिये सभी प्रयास करते हैं पर अगर किसी को अपने प्रयत्नों से भी सफलता नहीं मिलती तो उसे अपनी भाग्यहीनता की निंदा स्वयं नहीं करना चाहिए। अपने प्रयत्न जारी रखना ही मनुष्य का धर्म है और कभी न कभी उसमें सफलता मिलती है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-इस विश्व में सभी आदमी अमीर बनना चाहते हैं पर यह संभव नहीं है। किसी को इसमे सफलता मिलती है तो किसी को नर्हीं। जिनको सफलता नहीं मिलती उनमें कुछ लोग तो चुप बैठ जाते हैं पर कुछ लोग व्याकुल होकर सभी के सामने अपनी भाग्यहीनता को कोसने लगते हैं। इससे कोई लाभ नहीं होता बल्कि ऐसा कर वह अपना ही खून जलाते हैं। जिस तरह विद्वान लोग अपनी आत्मप्रवंचना से बचने की सलाह देते हैं वैसे ही आत्मनिंदा से भी बचना चाहिए।
समय के साथ समृद्धि बढ़ी है तो देखिये समाज में नैतिक आचरण में भी कमी आती गयी है। लोगों की मित्रता के रिश्ते बदनाम हो रहे हैं। अनेक मामलों में समृद्ध लोगों पर दूसरे की स्त्री से संपर्क रखने के आरोप भी लगते हैं। कहा जाता है कि बड़े लोगों के पाप तो छिपे रहते हैं पर प्रकृति का नियम है कि सभी के लिये पाप का दंड समान है। आदमी से किसी के पाप छिप जाये पर अपने आपसे वह छिपा नहीं सकता। परस्त्रीगमन से आदमी के अंदर एक डर बैठा रहता है जो धीरे-धीरे उसकी आयु को कम करता है। कहने को बड़े और समृद्ध लोगों को सामने कुछ नहीं कहता पर स्वयं उनके मन में तो डर रहता ही है।
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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3 comments:
pke vicharo se sahamat hun . is baat ka ullekh Dharmik grantho me kiya gaya hai . abhaar
एक अच्छे लेख के लिए धन्यवाद और वधाई. दोनों ही बातों का जीवन में अवतरण मनुष्य जीवन को सुखी और तनावरहित कर देगा.
sahi kaha aapne, dharma sammat..
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