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Tuesday, May 6, 2008

संत कबीर वाणी:स्वार्थी लोग करते हैं झूठी प्रशंसा Sant Kabir Speech: People are selfish false praise

स्वारथ कूं स्वारथ मिले, पडि पडि लूंबा बूंब
निस्प्रेही निरधार को, कोय न राखै झूंब


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जब लोग अपने हृदय में स्वार्थ की भावना लेकर परस्पर मिलते हैं तब एक दूसरे की आवश्यकता से अधिक प्रशंसा करते हैं। इस मिलन पर वह लोग बहुत प्रसन्न होते हैं। परंतु जो निस्वार्थ और निष्काम भाव से मिलते हैं वह इस तरह से एक दूसरे के प्रति दिखावे का सम्मान नहीं व्यक्त करते।

संसार से प्रीतड़ी, सरै न एकौ काम
दुविधा से दोनों गये, माया मिली न राम


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि संसार के विषयों की प्रवृत्ति के लोगों से संपर्क रखने पर शुभ कार्य नहीं होता। इससे तो व्यर्थ ही दुविधा में पड़ कर दोनों ही तरफ खाली हाथ रह जायेंगे। न तो इससे कोई धन की प्राप्ति होगी न ही भगवान की भक्ति ही कर पायेंगे।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-हमारे यहां सत्संग की परंपरा है जिसमें सम्मिलित होकर अपने हृदय की शुद्धि कर सकते हैं-यह अलग बात है कि लोग वहां भी अपने वार्तालाप में संसार विषयों पर ही चर्चा करते हैं। जिसे देखो वही अपने मित्रों और रिश्तेदारों को एकत्रित कर समाज में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है। सच तो यह है कि मित्र, परिवार और अन्य संबंध मात्र स्वार्थ के आधार पर ही होते हैं। सामने लोग प्रशंसा करते हैं जो कभी कभी स्वयं को झूठी लगती है। अगर अपने ज्ञान चक्षु खोलकर ऐसे लोगों के परस्पर मिलन को देखें तो इस बात का अनुभव होगा कि सभी एक दूसरे की झूठी प्रशंसा करते हैं। सच्ची प्रशंसा वही है जो पीठ पीछे हो। अतः अपने मुख के समक्ष की गयी प्रशंसा पर कभी अपने हृदय में अहंकार को स्थान नहीं देना चाहिए।

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1.Sant Kabir G says that the head when people in your heart to the spirit of mutual self-interest, then get each other's needs more than praise them. The meeting of the people are very happy. But the sense of selfless get it this way, a second show of respect not expressed.




2.Sant Kabir G says that the head of the subjects of the world's people to maintain contact on the good work does not. It is futile to the dilemma facing both sides in the left hand will be empty. It's not the receipt of any money not only God's will only be able devotional.


In the context of the current interpretation - There Satsang is the tradition of their own which included correction of the heart can - it's another matter that the people of the world where their conversation topics on the talk. Look what your friends and relatives of the same collecting society of their power of the performance. The fact is that friends, family and other relations on the basis of mere self-interest are. In front of people who are sometimes praised itself seems to be false. If your knowledge of such eye opening to get people to see if there is mutual experience that all the false praise to each other. The same is true appreciation of the behind the back. So your mouth before your heart ever been on the appreciation of the place of arrogance should not.

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