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Tuesday, May 27, 2008

संत कबीर वाणी:विचार कर बोलने वाला कभी अपमानित नहीं होता

सहज तराजू आनि के, सब रस देख तोल
सब रस माहीं जीभ रस, ज कोय जानै बोल

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि इस दुनिया मेे विभिन्न प्रकार के रस है पर भी को परख लिया। इमने सबसे अधिक वजन जीभ के रस का है। जो मीठे वचन बोलता है वही इस रस का महत्व जानता है।

बौलै बोल विचारि के, बैठे ठौर संभारि
कहैं कबीर ता दास को, कबहू न आवै हारि

संत कबीरदास जी कहते हैं कि जो सोच समझकर समय के अनुसार बोलता है और उपयुक्त स्थान पर बैठता है तो वह कभी पराजित नहीं कर सकता।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-हमने कुछ लोग ऐसे देखे होंगे जो शांत भाव से जीवन जीते हैं और उनको किसी की परवाह नहीं रहती। दरअसल वह समय के अनुसार उचित और अनुचित का महत्व जानते हुए कार्य करते हैं। अनावश्यक रूप से किसी से वार्ता नहीं करते और जब बोलते हैं तो बहुत ही सधे शब्दों में का उपयोग करते है। ऐसे लोग कभी भी कहीं अपमानित नहीं होते। ऐसे लोग अंर्तमुखी होते हैं और बहुत सोच विचार कर बोलते हैं। जीवन में सफलता उनके कदम चूमती है।
इस संसार में ऐसे भी बहुत लोग हैं जो जीवन में बहुत काम करते हैं। उनका पूरा जीवन परिश्रम करते हुए निकल जाता है और फिर भी समाज में सम्मान नहीं प्राप्त कर पाते वजह यह कि वह अपने मुख से अनर्गल प्रलाप कर अपने ही किये पर पानी फेर देते हैं। बहुत काम करते हैं पर फिर भी अनुभव के नाम पर कोरे रह जाते हैं। अपनी सारी ऊर्जा व्यर्थ बोलने में लगाते है।

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत खूब व्याख्या की है. आभार.

mamta said...

आज का दोहा तो समयानुकूल है। अर्थात बहुत ही मायने रखता है।

मीनाक्षी said...

बहुत प्रभावशाली... समय की माँग को पूरा करते हुए ऐसे ही विचार हममें से एक भी अगर आत्मसात कर ले तो लिखना सफल हो गया समझिए.

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