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Saturday, May 10, 2008

संत कबीर वाणी:शब्द का महत्व चुम्बक समान


यही बड़ाई शब्द की, जैसे चुम्बक भाय
बिना शब्द नहिं ऊबरै, केता करै उपाय


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि शब्द का महत्व तो चुम्बक के समान है जो आदमी को अपनी आकर्षित करता है। बिना शब्द के कोई भी अपने जीवन में उबर नहीं सकता चाहे जितने भी उपाय कर ले।

सीखै सुनै विचार ले, ताहि शब्द सुख देय
बिना समझै शब्द गहे, कछु न लोहा लेय


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जो शब्द सुनकर कुछ सीखता और उस पर विचार करता है उसे वह सुख प्रदान करते हैं। बिना सोचे समझे ग्रहण कर बोलने वाला व्यक्ति कोई लाभ नहीं ले पाता।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-कई बार कुछ लोगों को देखकर हमें यह लगता होगा कि कि अधिक बोल जाते हैं। कई बार यह अनुभव भी होता है कि वह कुछ कार्यों को समय रहते सीख नहीं पाये। यह अनुभव हमें अपने बारे में भी होता है। मनुष्य का एक दूसरे से संपर्क वार्तालाप को माध्यम से होता है और आजकल अंतर्जाल पर संपर्क होता है तो शब्द लिखकर भी संपर्क होता है। शब्द बोला जाय या लिखा जाये उसमें आकर्षण होता है। इन पंक्तियों का लेखक अंतर्जाल पर लिखता है और कई बार दूसरे का लिखा ही दिल को ऐसा छू जाता है जैसे उसने बोला हो। कई लोग ऐसे भी है जो दुःख पहुंचाने वाले शब्द लिखते हैं। ऐसे लोग अज्ञान के अंधेरे में होते हैं। वह सोचते हैं कि इस तरह शब्द लिखने या कहने से किसी पर कोई प्रभाव नहीं होता या हम अपने मन की भडास निकाल लें दूसरे पर उसका जो प्रभाव होता है उसकी हम चिंता क्यों करें? यह ऐसे लोग होते हैं जो जिनको जीवन का ज्ञान देने वाला गुरू नहीं मिला होता या फिर उन्होने उसके ज्ञान को गंभीरता से ग्रहण नहीं किया होता।

कई बार लोग एक दूसरे के लिए पीठ पीछे अभद्र शब्द का करते हुए निंदा करते हैं सोचते हैं कि कौन वह सुन रहा है या जाकर उससे कहेगा। यह सच भी होता है पर ऐसा कर वह अपने मन और देह को भी भारी कष्ट देते हैं। अपना खून जलाते हैं। अतः उनकी कमियों से सीखकर हमें अपने अंदर सुधार कर लेना चाहिए।

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