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Monday, May 12, 2008

संत कबीर वाणी:सत्य शब्द की खोज करे वह संत धन्य


खोजी हुआ शब्द का, धन्य संत जन सोय
कहैं कबीर गहि शब्द को, कबहु न जाय बिगोय


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि वह सत्य धन्य है जो सत्य के शब्दों की खोज करता है। जो सत्य के शब्द के ज्ञान को धारण करता है वह गलती नहीं करता और उसका कभी पतन नहीं होता।

सोई शब्द जिन सार है, जो गुरू दिया बताय
बलिहार वा गुरुन की, सीष बियोग न जाय


वह शब्द ज्ञान सत्य है जो हमें अपनु गुरूओं से मिलता है। उस गुरू के सर्वस्व अर्पण कर दो जिससे शब्द ज्ञान मिला है और उससे कभी दूर न जाओ

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-आजकल ढोंगी गुरूओं की बाढ़ इस देश में आयी है। कभी कभी तो लगता है कि अध्यात्मिक ज्ञान को रटने वाले पर स्वयं उसे धारण करने से वंचित लोग गुरू बनते जा रहे हैं। सकाम भक्ति का प्रचार इस समय जोरों पर है। सकाम भक्ति से तब तक ही मन में शांति रहती है जब तक हम उसे करते हैं और अधिकतर गुरू इसी प्रकार की भक्ति को प्रोत्साहन देते हैं ताकि जब तक भक्त या शिष्य जब तक उनके पास रहें उसमें मग्न रहें और फिर सांसरिक दुनियां में लौटकर दुःख भोगते हुए उनको याद करें। निष्काम भक्ति तो सदैव ह्ृदय में बनी रहती हैं और करने के बाद भी हमारा मन प्रफुल्लित रहता है। निष्काम भक्ति का आशय ईश्वर का ध्यान करते हुए निरंकार के रूप में उसे देखना। इससे हमारे मन, बुद्धि और विचारों का जो चक्र है वह घूमता रहता है और उससे उसमें शुद्धता आती है।

1 comment:

Udan Tashtari said...

व्याख्या बेहतरीन की है.

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