अर्थस्य संग्रहे चैनां व्यये चैव नियोजयत्
शौचे धर्मेऽन्नपक्तयां च पारिणाहृास्य योजने
धन का संग्रह करना एवं खर्च करना, घर की स्वच्छता, भोजन बनाना तथा घर की सभा वस्तुओं को संभालने का दायित्व स्त्रियों को सौप देना चाहिए। इस तरह स्त्रियों को अपने दायित्व का निर्वहन से सुखद अनुभूति होती है और उनका मन घर में लगा रहता है।
स्वां प्रसूति चरित्रं च कुलमात्मानमेव च
स्वं च धर्म प्रयत्नेन जायां रक्षन् हि रक्षति
जो पुरुष प्रयत्नपूर्वक अपनी स्त्री की रक्षा करता है वही अपनी संतान, चरित्र, परिवार तथा अपने साथ अपने धर्म की रक्षा कर पाता है।
संपादकीय व्याख्या-आजकल स्त्रियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने केे समाचार आये दिन अखबारों में छपते और टीवी चैनलों पर दिखाये जाते है। इससे यह जाहिर होता है कि उनके परिवार के पुरुष सदस्य उनके प्रति अपने दायित्वों में कहीं न कहीं कमी रखते है। स्त्रियों पर दैहिक आक्रमण ही नहीं बल्कि वाणी से भी कोई अभद्र शब्द कहना निषेध है। अब तो सरकार ने स्त्रियों के रक्षा के करने के लिये अनेक प्रकार के कानून भी बना दिये हैं। स्त्री के सम्मान की रक्षा ही धर्म की रक्षा है। कई लोग इस प्रकार के अहंकार में रहते हैं कि वह चूंकि पुरुष हैं इसलिये वहीं घर का खर्च चलाने के साथ धन का संग्रह करेंगे। ऐसे लोग स्वयं ही परेशानी बुलाते है। उनको घर चलाने का जिम्मा अपनी गृहिणी को ही सौंपना चाहिए। वह उससे बचत भी करतीं हैं और समय आने पर अपने ही पति और परिवार की सहायता करतीं हैं।
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
Wednesday, May 7, 2008
मनुस्मृति:घर चलाने का दायित्व स्त्रियों को सौंप देना चाहिए
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1 comment:
बहुत अच्छी बात कही है आपने ।
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