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Saturday, March 29, 2008

संत कबीर वाणी:दिखावे की भक्ति से कोई लाभ नहीं

बाहर क्या दिखलाइए, अंतर जपिये राम
कहा महोला खल्क सौं, परिहों धनी सौं काम


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अनेक तरह का प्रदर्शन कर लोग क्या दिखलाना चाहते हैं? इस तरह के दिखावे से कोई लाभ नही होता। हमारा संबंध तो परमात्मा से है और उसको ह्रदय से एकांत में स्मरण करने से ही हमें लाभ होता है।

आज के संदर्भ में व्याख्या- हमारे देश में दिखावे की भक्ति करने वाले भी बहुत लोग रहे है। कई लोग तो ऐसे हैं जो ऊंची आवाज में प्रार्थना और आरती गाते हैं ताकि लोग यह समझें कि वह भगवान के भक्त हैं और उनका सम्मान करें। हालांकि कुछ लोगों को इसका सांसरिक लाभ होता है और वह अपनी इस छवि का फायदा उठाकर अपने कई काम निकाल लेते हैं पर उनके मानसिक और शारीरिक संताप कभी कम नहीं होते। वे लोग अवसर आने पर छल, कपट और बेईमानी से भी नहीं चूकते।

जो लोग वास्तव में भक्त हैं वह एकांत साधना करते है और इसका अपने मुख से प्रचार नहीं करते। ऐसे लोगों के चेहरे पर भगवान की निष्काम भक्ति के कारण तेज टपकता हैं। उनके व्यवहार में सदाचार, सहजता और ज्ञान का आभास उनके संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को स्वाभावकि रूप से होता है। ऐसे लोग जीवन में सुख की अनुभूति करते हैं और परमात्मा की उन पर कृपा होती है।

बाहर भक्ति दिखाने की बजाय एकांत में ही करना चाहिये।

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

दीपक जी, भक्ति तो कपुर की तरह से हे उसे अगर दुनिया को दिखोगे तो वो हवा मे उड जाये गी पास कुछ नही बचे गा, लेकिन आज कल सब दिखावे के लिये ही, जान ओर अन्जान पने मे सब करते हे

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