पण्डित और मसालची, दोनों सूझत नांहि
औरन को करै चांदना, आप अंधेरे मांहि
संत शिरोमणि कबीरदासजी कहते हैं कि पोथी पढ़कर अपने आपको पंडित कहलाने वाले और मशाल लेकर दूसरे को मार्ग बतलाने वाले दोनों ही अज्ञान और अंधेरे में रहते हैं।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या- आपने देखा होगा कि अनेक लोग धार्मिक पुस्तकें पढ़ते हैं और अवसर मिलने पर लोगों के बीच अपना ज्ञान बघारते हैं। ऐसे लोगों का व्यवहार और कार्य देखें तो यह लगेगा कि उनका ज्ञान केवल गले तक ही सीमित है और उन्होंने उसे अपने मस्तिष्क में धारण नहीं किया है। कुछ मामलों में तो आम सांसरिक व्यक्ति से भी अधिक लोभी, लालची, कामी, और क्रोधी होते है।
आज के समय तो धार्मिक प्रवचन करना एक व्यवसाय होता है। प्रवचनकर्ता अपने कार्यक्रमों के लिये भारी फीस वसूल करते हैं और अपने यजमानों की प्रशंसा में अपने भक्तों के सामने ही तमाम वाक्य व्यक्त करते हैं। कार्यक्रमों की समाप्ति के बाद अपने सामान्य भक्तों से वह ऐसे ही दूर हो जाते हैं जैसे कि कोई वी.आई.पी. हो। इतना ही नहीं कुछ घटनाएं ऐसीं भीं हुंईं हैं कि कम पैसा मिलने पर वह ऐसे तथाकथित ज्ञानी कार्यक्रम बीच में ही छोडकर चले जाते है। वह लोग अपने को कभी भगवान का सामान्य भक्त तक नहीं कहते क्योंकि उनमें अपने ज्ञान का इतना अहंकार होता है कि ऐसा कहने में अपने को छोटा अनुभव करते है। कुल मिलाकर वह दूसरों को उपदेश करते हैं पर खुद अज्ञान के अंधेरे में रहते है।
ऐसे लोगों के कार्यक्रम में जाकर उनके प्रवचन कार्यक्रम में अपना समय पास करने या ज्ञान के वचन सुनने में कोई बुराई नहीं है पर उनके आकर्षण में आकर उन्हें अपना गुरू बनाना कभी लाभदायक नहीं हो सकता।
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
Sunday, March 30, 2008
संत कबीर वाणी:पंडित और मशालची को कुछ नहीं सूझता
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1 comment:
सत्य वचन, लेकिन भाई आज कल मिलते ही ऎसे गुरु हे, देखो टीबी पर एक का नाम भी बता दो जॊ आप की नजर मे सच्चा हो,सभी पखण्डी,कोई मुहं से सोना निकाल रहा हे, तो कोई राख निकाल रहा हे, लेकिन कसुर उन से ज्यादा हमारा हे हम जाते ही क्यो हे ऎसी जगह.
आप के लेख ने मन जीत लिया,बहुत उत्त्म विचार, धन्यवाद
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