रहिमन राज सराहिए ससिसम सुखद जो होय
कहा वापुरी भानु है, तपैं तरैवन खोय
कविवर रहीम कहते है की उसी राज्य की प्रशंसा करना चाहिऐ जो चन्द्रमा के समान शीतल सुखदाई है। उस सूरज की क्या कहैं जो तपने पर शीतलता को नष्ट कर देता है।
आज के संदर्भ में व्याख्या-आजकल देश में लोकतंत्र है। अब राजा तो नहीं है पर राजकाज चलाने के लिए लोग तो हैं। ऐसे में जिनके पास राजकाज है उनका आंकलन उनके कार्यों के आधार पर ही हो सकता है। जिनके कार्यों से लोग खुश हैं उनकी तो सराहना की जानी चाहिऐ पर जो अपने पद पर बैठकर अपना दायित्व भूलकर केवल उसके लाभ उठाना चाहते हैं पर अपने प्रयासों से आज आदमी को लाभ नहीं दिला सकते उनकी प्रशंसा कोई नहीं करता। सामने भले कोई कुछ नहीं कहता पर पीठ पीछे उनकी हर कोई निंदा करता है। यहाँ अब कोई एक राजा नहीं है बल्कि राजकाज चलाने वाले लोगों की ऊपर से लेकर नीचे तक एक पंक्ति है और उसमें सबके अपने पदनाम और दायित्व हैं।
राजकाज से जुडे लोग अपने अधिकारों की बात तो खूब करते हैं पर अपने दायित्वों का बोध उनको नहीं होता और न ही इस बात की परवाह है की उनकी लोगों में क्या छवि है। कई अपनी शक्ति दिखाते हैं। अपने से छोटे को दबाकर या उसकी उपेक्षा कर यह दिखाते हैं कि उनके पास क्या ताकत है? अपनी ताकत आम आदमी के प्रयोग में करने के काम को हेयसमझते हैं। राजकाज से संबधित कार्य करने वाले कुछ लोग फिर भी ऐसे होते हैं जो लोगों में लोकप्रिय होते हैं क्योंकि वह अपने दायित्व पूरे करते हैं। उनके बारे में लोग कहते हैं कि 'अमुक अधिकारी अच्छा है", ''अमुक अधिकारी और कर्मचारी का व्यवहार अच्छा है"। मैं बडे पदों के नाम इसलिए नहीं ले रहा क्योंकि आम आदमी के रूप में हमारा काम तो निचले पद वाले लोगों से ही पड़ता है। गाँवों में तो राजकाज के नाम पर वही लोग देखे और पहचाने जाते हैं।
इसलिए जनता से सीधे जुडे राजकाजी लोगों को अपना व्यवहार अच्छा रखना चाहिऐ और नहीं रखते हैं तो उन्हें भी यह समझना चाहिऐ कि वह किसी काम के नहीं है। लोग उनको पीठ पीछे कटुवचन कहते हुए उनकी निंदा करते हैं।
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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