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Saturday, June 22, 2013

मनुस्मृति-राज्य पंचायत प्रणाली के माध्यम से संचालित हों(manu smirti-rajya panchayat pranali ke madhyam se sanchalit hon)



         भारत में गांवों  की बदहाल स्थितियां किसी से छिपी नहीं है। आधुनिक व्यवस्था में गांवों के विकास की बात तो बहुत कही जाती है पर देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण गांवों में आज भी पेयजल, स्वास्थ्य तथा शिक्षा की स्थिति बद से बदतर ही होती जा रही हैं।  भारतीय अध्यात्मिक ग्रंथों को एकदम विस्मृत कर पश्चिमी विचाराधाराओं का अनुकरण तो किया गया है पर उन्हें भी व्यवहार में नहीं लाया जा रहा।  गरीब और गांवों के विकास के नारे भी खूब लगते है।  हैरानी तब आती है जब गांवों के विकास तथा पंचायती राज की कल्पना के लिये हर कोई श्रेय लेना चाहता है। सच बात तो यह है कि मनृस्मृति में पहले से ही पंचायती राज का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है। यह सिद्धांत कोई प्रचलित सामाजिक पंचायतों के रूप में नहीं वरन् प्रशासनिक व्यवस्था के लिये बनाया गया है। अक्सर कहा जाता है कि भारत में पंचायत प्रणाली केवल सामाजिक उद्देश्यों के लिये थी। यह सोच गलत है क्योंकि मनु महाराज जिन पंचायतों की बात करते हैं उनका स्वरूप प्रशासनिक है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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ग्रामस्याधिपतिं कुर्याद्दशग्रामपतिं तथा।
विंशतीशं शतेशं च सहस़्पतिमेव च।।
    हिन्दी में भावार्थ-प्रत्येक गांव में एक मुखिया नियुक्त करना चाहिये। दस गांवों को मिलाकर बीस गांवों का और बीस बीस गांवों के पांच समूहों को मिलाकर सौ गांवों का तथा सौ गावों के दस वर्गों का एक समूह बनाकर उनकी देखभाल करने हेतु एक मुखिया नियुक्त कराना चाहिये।
तेषां ग्राम्याणि कार्याणि पृथक कार्याणिं चैव हि।
राज्ञोऽन्यः सचिवः स्निग्धस्तानि पश्चवैदतन्द्रितः।।
     हिन्दी भाषा में भावार्थ-सभी गांवों  के काम की देखभाल करने के लिये सचिवों की नियुक्ति करते उसे उसे सभी गावों के अधिपतियों पर दृष्टि बनाये रखने का आदेश देना चाहिये।
            कहा जाता है कि महात्मा गांधी मानते थे कि असली भारत गांवों में रहता है जबकि मनुस्मृति में तो गांवों को ही बड़े राष्ट्र का आधार माना गया है। इतना ही नहंी नगरों के साथ गांवों की देखभाल पर जोर दिया गया है। हम यह भी कह सकते हैं कि पंचायती राज्य की कल्पना का श्रेय आधुनिक समय के कथित विद्वानों को नहीं दिया जा सकता। मनुस्मृति में यह कल्पना पहले ही प्रस्तुत की गयी है। इतना ही प्राचीन काल की व्यवस्था में इसे अपनाया भी गया था। इसी कारण हमारे यहां अनुशासन तथा व्यवस्था बनी हुई थी।

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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