अंग्रेजी शिक्षा पद्धति तथा आधुनिक प्रचार साधनों में-फिल्म,
टीवी और इंटरनेट पर-शीघ्र अमीर और प्रसिद्ध होने के नुस्खे खूब बताये जाते
हैं। सत्य तो यह है कि आधुनिक शिक्षा वैसे ही आदमी में चिंत्तन क्षमता
निर्माण नहीं करती तो वही प्रचार माध्यम उसमें अधीरता के भाव का निर्माण
करते हैं जिससे विश्व समाज असमंजस वातावरण में सांस ले रहा है। फिल्मों
में नायकों के पात्रों का सृजन कर लोगों का मनोरंजन किया जाता है पर उनकी
पटकथायें हमेशा ही हिंसा से बेहतर परिणामों को प्रदर्शित करती है। सभी
नायक अपने सामने आने वाले खलनायकों को बल से मारते हैं। कहीं नीति से किसी
खलनायक का पतन होते नहीं दिखाया जाता है।
भारत ही नहीं विश्व के अधिकांश देशों की व्यवस्थायें आधुनिक समय में विफल साबित हो रही हैं। जनाक्रोश बढ़ रहा है और इसका लाभ फिल्म वाले उठाते हैं। हाल ही में भारत के एक प्रसिद्ध शायर ने कहा था कि भारत के एक अभिनेता की ‘‘नाखुश युवा’’ की छवि फिल्म के पटकथाकारों ने बनाई थी। दरअसल उनका कहना था कि भारत में भेजा गया एक कुख्यात आतंकवादी इसी तरह का एक युवा था जिसे देश के दुश्मनों ने वास्तविक हमले की पटकथा का सृजन कर भेजा अतः उसे भेजने वाले लोगों को भी कड़ी सजा देने या दिलाने का प्रयास करना चाहिए। देश के कुछ बुद्धिमानों ने इस की आपत्ति की कि एक महानायक की एक आतंकवादी से तुलना क्यों की गयी? जबकि उन महान शायर का आशय यह था कि जिस तरह पटकथाकार किसी कल्पित पात्र का सृजन करता है उसी पर कोई अभिनेता अपनी नायक की भूमिका निभाता है। उसी तरह उस आतंकवादी को भारत के दुश्मनों ने ऐसे ही वास्तविक हमले की पटकथा रचकर यहां अपराध करने के लिये उकसाया। दरअसल विश्व में हिंसा फैलाकर अपना मतलब साधने वाले ऐसे ही युवकों का उपयोग कर रहे हैं। आदमी आधुनिक रूप से शिक्षित हो या अशिक्षित कोई अंतर नहीं रह गया क्योंकि आध्यात्म्कि ज्ञान से सभी दूर हैं। पूरे विश्व की सभी भाषाओं की फिल्मों में हिंसा दिखाई जाती है। कहा तो यह जाता है कि यह सब समाज में चल रहा है इसलिये दिखा रहे हैं पर यह भी सच यह है कि इससे हिंसक घटनायें बढ़ जाती हैं। अगर आप न्यूयार्क में हुई हिंसक घटना को ऐसी फिल्म में दिखायेंगे जो सारे विश्व में दिखती है तो यह बात तय है कि उसकी पुनरावृत्ति करने के लिये अनेक अनीतिवान और अपराधी तत्व तैयार हो जायेंगे। यह अलग बात है कि ऐसे लोग एक दो बार ही ऐसे अपराध करते हैं बाद में स्वयं भी काल कलवित हो ही जाते हैं।
भारत ही नहीं विश्व के अधिकांश देशों की व्यवस्थायें आधुनिक समय में विफल साबित हो रही हैं। जनाक्रोश बढ़ रहा है और इसका लाभ फिल्म वाले उठाते हैं। हाल ही में भारत के एक प्रसिद्ध शायर ने कहा था कि भारत के एक अभिनेता की ‘‘नाखुश युवा’’ की छवि फिल्म के पटकथाकारों ने बनाई थी। दरअसल उनका कहना था कि भारत में भेजा गया एक कुख्यात आतंकवादी इसी तरह का एक युवा था जिसे देश के दुश्मनों ने वास्तविक हमले की पटकथा का सृजन कर भेजा अतः उसे भेजने वाले लोगों को भी कड़ी सजा देने या दिलाने का प्रयास करना चाहिए। देश के कुछ बुद्धिमानों ने इस की आपत्ति की कि एक महानायक की एक आतंकवादी से तुलना क्यों की गयी? जबकि उन महान शायर का आशय यह था कि जिस तरह पटकथाकार किसी कल्पित पात्र का सृजन करता है उसी पर कोई अभिनेता अपनी नायक की भूमिका निभाता है। उसी तरह उस आतंकवादी को भारत के दुश्मनों ने ऐसे ही वास्तविक हमले की पटकथा रचकर यहां अपराध करने के लिये उकसाया। दरअसल विश्व में हिंसा फैलाकर अपना मतलब साधने वाले ऐसे ही युवकों का उपयोग कर रहे हैं। आदमी आधुनिक रूप से शिक्षित हो या अशिक्षित कोई अंतर नहीं रह गया क्योंकि आध्यात्म्कि ज्ञान से सभी दूर हैं। पूरे विश्व की सभी भाषाओं की फिल्मों में हिंसा दिखाई जाती है। कहा तो यह जाता है कि यह सब समाज में चल रहा है इसलिये दिखा रहे हैं पर यह भी सच यह है कि इससे हिंसक घटनायें बढ़ जाती हैं। अगर आप न्यूयार्क में हुई हिंसक घटना को ऐसी फिल्म में दिखायेंगे जो सारे विश्व में दिखती है तो यह बात तय है कि उसकी पुनरावृत्ति करने के लिये अनेक अनीतिवान और अपराधी तत्व तैयार हो जायेंगे। यह अलग बात है कि ऐसे लोग एक दो बार ही ऐसे अपराध करते हैं बाद में स्वयं भी काल कलवित हो ही जाते हैं।
आशिक्षितनयः सिंहो हन्तीमं केवलं बलात्।
तच्च धीरो नरस्तेषां शातानि जातिमाञ्जायेत्।।
तच्च धीरो नरस्तेषां शातानि जातिमाञ्जायेत्।।
हिन्दी में भावार्थ- अशिक्षित सिंह ने कोई नीति नहीं सीखी होती, वह केवल
अपने बल से ही नष्ट कर डालता है जबकि ज्ञानी और धीर पुरुष अपनी नीति से
सैंकड़ों को मारता है।
पश्चयद्भिर्दूरतोऽपायान्सूपायप्रतिपत्तिभिः।
भवन्ति हि फलायव विद्वाद्भश्वन्तिताः क्रियाः।।
हिन्दी में भावार्थ-जो विद्वान पुरुष दूर से ही आती विपत्ति को देखकर उसके प्रतिकार का विचार करता है वह अपना बचाव करने में सक्षम होता है।भवन्ति हि फलायव विद्वाद्भश्वन्तिताः क्रियाः।।
जो लोग नीति और धीरज के साथ जीवन में रहते हैं उनकी शक्ति बहुत ज्यादा
होती है। महर्षि विवेकानंद ने अपने अल्प जीवन में पूरे विश्व में भारतीय
ज्ञान का प्रकाश फैलाया। उसी तरह भारतीय क्रिकेट के दो महान खिलाड़ियों
कपिल देव और धोनी ने अपनी कप्तानी में विश्व कप जितवाया। धोनी तो पहले बीस
ओवर और अब पचास दो विश्व कप जितवा चुके हैं। अगर आदमी में धीरज और ज्ञान हो
तो वह अपने सामर्थ्य से सारे समाज को प्रसन्न करने के साथ ही उसका
मार्गदर्शन भी करता है। इसलिये किसी भी प्रचार में आकर जल्दबाजी में सफलता
हासिल करने की बजाय धीरज के साथ ही योजना बनाकर लक्ष्य प्राप्त करना
चाहिये।
यह ब्लाग/पत्रिका विश्व में आठवीं वरीयता प्राप्त ब्लाग पत्रिका ‘अनंत शब्दयोग’ का सहयोगी ब्लाग/पत्रिका है। ‘अनंत शब्दयोग’ को यह वरीयता 12 जुलाई 2009 को प्राप्त हुई थी। किसी हिंदी ब्लाग को इतनी गौरवपूर्ण उपलब्धि पहली बार मिली थी।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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