भारतीय दर्शन में अध्यात्म का अत्यंत महत्व है। पंचतत्वों से
बनी हमारी देह में मन, बुद्धि और अहंकार तीन ऐसी प्रकृतियां स्वतः आती हैं
जिनसे हम संचालित होते दिखते हैं पर इसे धारण करने वाला आत्मा है जिससे हम
परिचित नहीं होते। यही आत्मा अध्यात्म भी कहा जाता है। इसका ज्ञान ही
अध्यात्मिक ज्ञान है। कहने को यह सरल लगता है कि हम अपने आत्मा को जानते
हैं पर अगर विषयों में हमारी लिप्तता इतनी अधिक रहती है कि कभी हम यह अनुभव
ही नहीं कर पाते कि हम स्वयं ही आत्मा है और यह क्षणभंगुर देह धारण की है
जो विषयों में लिप्त होने से हमेशा कष्ट झेलती है।
सांसरिक विषयों में जो अनुभव होता है उसे ही हम अध्यात्म ज्ञान मान लेते हैं। यह भ्रम अनेक लोगों पूरी जिंदगी रहता है कि वह बहुत ज्ञानी हैं। जिन लोगों को ज्ञान प्राप्त करने की ललक है वह समय मिलते ही अपना काम शुरु कर देते हैं। अनेक लोग तो अपना समय निकालकर यह प्रयास करते हैं कि उनको आत्म ज्ञान मिल जाये।
सांसरिक विषयों में जो अनुभव होता है उसे ही हम अध्यात्म ज्ञान मान लेते हैं। यह भ्रम अनेक लोगों पूरी जिंदगी रहता है कि वह बहुत ज्ञानी हैं। जिन लोगों को ज्ञान प्राप्त करने की ललक है वह समय मिलते ही अपना काम शुरु कर देते हैं। अनेक लोग तो अपना समय निकालकर यह प्रयास करते हैं कि उनको आत्म ज्ञान मिल जाये।
संत कबीर कहते हैं कि
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अनराते सुख सोचना, रातें नींद न आय।
ज्यों जल छूटो भाछरी, तलफत रैन बिहाय।।
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अनराते सुख सोचना, रातें नींद न आय।
ज्यों जल छूटो भाछरी, तलफत रैन बिहाय।।
जो लोग आत्मज्ञान प्राप्त करने की सोचते हैं वह रात को सोते भी नहीं है।
जो जल में मछली की तरह विषयों मे लिप्त हैं वह रात को आराम से सोते हैं यह
अलग बात है कि अंततः वह तकलीफदेह साबित होगा।
मुख आवै सोई कहै, बोलै नहीं विचार।
हते पराई आत्मा, जीभ बांधि तलवार।।
हते पराई आत्मा, जीभ बांधि तलवार।।
जिनके पास ज्ञान नहीं है वह मुख में जो आता है बोल देते हैं। उनकी बातों
से दूसरों की आत्मा आहत होती है। वह अपनी जीभ में एक तरह से तलवार बांधकर
चलते हैं।
आजकल के आधुनिक युग में अध्यात्म की बातें बहुत होती हैं पर उसके ज्ञान का मूल स्वरूप क्या है यह विरले ही जानते हैं। प्रगति के साथ कृत्रिम रौशनी, रंग तथा रवैया बदला है। लोग इस संसार के आकर्षक पक्ष में मन इस तरह फंसाये हुए हैं कि उनके लिये अध्यात्म ज्ञान एकदम गूढ़ है और वह तो केवल फालतू लोगों के लिये बना है। यही कारण है कि समाज में परस्पर विद्वेष, निंदा तथा शत्रुता के माहौल में सांस ले रहा है। लोगों के लिये कठोर और मजबूत व्यवहार में अंतर नहंी रहा है। कायरता और धैर्य की समझ नहीं है।
हालांकि एकदम निराशाजनक स्थिति भी नहीं है। देश में अभी भी अध्यात्म में रुचि रखने वालों की कमी नहीं है हालांकि जनंसख्या की दृष्टि से यह स्थिति अधिक संतोषजनक मान लेना गलत होगा। आजकल समाज में आधुनिक सुविधाओं, वस्तुओं तथा संपति का संग्रह करने की होड़ लगी हुई है। इस स्थित से उबरने के लिये आवश्यक है अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करने का अधिक से अधिक लोग प्रयास करें।
आजकल के आधुनिक युग में अध्यात्म की बातें बहुत होती हैं पर उसके ज्ञान का मूल स्वरूप क्या है यह विरले ही जानते हैं। प्रगति के साथ कृत्रिम रौशनी, रंग तथा रवैया बदला है। लोग इस संसार के आकर्षक पक्ष में मन इस तरह फंसाये हुए हैं कि उनके लिये अध्यात्म ज्ञान एकदम गूढ़ है और वह तो केवल फालतू लोगों के लिये बना है। यही कारण है कि समाज में परस्पर विद्वेष, निंदा तथा शत्रुता के माहौल में सांस ले रहा है। लोगों के लिये कठोर और मजबूत व्यवहार में अंतर नहंी रहा है। कायरता और धैर्य की समझ नहीं है।
हालांकि एकदम निराशाजनक स्थिति भी नहीं है। देश में अभी भी अध्यात्म में रुचि रखने वालों की कमी नहीं है हालांकि जनंसख्या की दृष्टि से यह स्थिति अधिक संतोषजनक मान लेना गलत होगा। आजकल समाज में आधुनिक सुविधाओं, वस्तुओं तथा संपति का संग्रह करने की होड़ लगी हुई है। इस स्थित से उबरने के लिये आवश्यक है अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करने का अधिक से अधिक लोग प्रयास करें।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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