आधुनिक युग में भौतिकता को प्रभाव ने सामान्य आदमी की विवेक शक्ति को करीब करीब नष्ट ही कर दिया है। लोग सामान खरीदने और पैसा कमाने में इतना दिमाग लगाते हैं कि उनको इस संसार में जीवधारियों के मनोविज्ञान का ज्ञान ही नहीं रहता। वह अपने आसपास सक्रिय व्यक्तियों का अनुमान नहीं करते। यही कारण है कि लोग कौनसी बात मन में रखना चाहिए और कौनसी सार्वजनिक रूप से कहें यह बात समझ नहीं पाते। अपनी इस लापरवाही से अनेक लोग अपनी जीवन में भारी कष्ट केवल इसलिये उठाते हैं क्योंकि वह अपने मन की बात सभी को बताते हैं।
विदुरनीति में कहा गया है कि
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यस्य मंत्रं न जानन्ति बाह्याश्चाभ्यन्तराश्च ये।
स राजा सर्वतश्चक्षुश्चिरमैश्वर्यमश्नुते।।
‘‘जिस व्यक्ति के मन की बात को उसके बाह्य तथा अंतरंग मित्र तक नहीं जानते हों वह सब तरफ दृष्टि रखने वाला चिरकाल तक इस संसार का सुख भोगता है।’’
नासुहृत परमं मंत्रं भारतार्हति वेतितुम।
अपण्डितो वापि सुहृत पण्डितो वाव्यनात्मवान्।
नापरीक्ष्य महीपालः कुर्यात् सचिवात्मनः।।
‘‘जो मित्र न हो और मित्र होने पर भी ज्ञानवान न हो और ज्ञानी होने पर भी उसका स्वयं पर नियंत्रण न हो वह गुप्त बात जानने योग्य नहीं है। अच्छी तरह परखे बिना किसी को मित्र न बनायें।’’
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यस्य मंत्रं न जानन्ति बाह्याश्चाभ्यन्तराश्च ये।
स राजा सर्वतश्चक्षुश्चिरमैश्वर्यमश्नुते।।
‘‘जिस व्यक्ति के मन की बात को उसके बाह्य तथा अंतरंग मित्र तक नहीं जानते हों वह सब तरफ दृष्टि रखने वाला चिरकाल तक इस संसार का सुख भोगता है।’’
नासुहृत परमं मंत्रं भारतार्हति वेतितुम।
अपण्डितो वापि सुहृत पण्डितो वाव्यनात्मवान्।
नापरीक्ष्य महीपालः कुर्यात् सचिवात्मनः।।
‘‘जो मित्र न हो और मित्र होने पर भी ज्ञानवान न हो और ज्ञानी होने पर भी उसका स्वयं पर नियंत्रण न हो वह गुप्त बात जानने योग्य नहीं है। अच्छी तरह परखे बिना किसी को मित्र न बनायें।’’
यह सही है कि इस संसार में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग होते हैं। इतना ही नहीं समय और हालातों के अनुसार हर मनुष्य की मनस्थिति भी बदलती है। सामान्य मनुष्य से ज्ञानी होने की अपेक्षा नहीं की जा सकती तो ज्ञानी के भी मानसिक रूप से मजबूत होने की संभावना नहीं होती। मुख्य बात यह है कि जब हम अपने मन की बात स्वयं अपने मन में नहीं रख सकते तो दूसरे से अपेक्षा करना व्यर्थ है। इसलिये जहां तक हो सके अपने मन की बात किसी को बताना नहीं चाहिए। अपने लक्ष्य और उसकी प्राप्ति के साधनों का खुलासा कभी नहीं करना चाहिए। सामान्य मनुष्यों में यह भाव रहता है कि वह दूसरे की तरक्की से ईर्ष्या और द्वेष करते हैं। ज्ञानी का भी भरोसा नहीं कि वह अपने मन में पवित्रता रख सके।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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