प्रातःकाल को ऊषाकाल भी कहा जाता है। हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में नींद से जागना जीवन में प्रतिदिन नवीनतम आनंद प्रदान करता है। आजकल के आधुनिक रहन सहन की शैली में इतना बदलाव आया है कि आमतौर से लोग सूर्योदय के बाद उठते हैं। यही कारण है कि हम देख रहे हैं कि हमारे देश में स्वास्थ्य का स्तर गिरता जा रहा है। मधुमेह, हृदय रोग, वायु विकार तथा अन्य बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है। इनको राजरोग भी कहा जाता है जो केवल धनिकों में पाये जाते है जिनकी जीवन शैली में आलस्य अधिक रहता है। स्थिति यह है कि कहीं बुजुर्गों के मिलाप होता है तो वहां अध्यात्मिक चर्चा से अधिक बीमारियों के साथ ही इलाज की चर्चा होती है। अब लोग ज्ञान नहंी बघारते बल्कि अपनी बीमारी से कैसे लड़ रहे हैं इस पर अपनी अभिव्यक्ति अधिक व्यक्त करते हैं। कुछ रोगों के बारे में तो यहां तक मान लिया है कि बिना गोली लिये प्रभाविक मनुष्य कभी जीवन में आगे चल ही नहीं सकता। यह सोच गलत है। जो लोग प्रातःकाल उठकर सैर या योगसाधना वगैरह करते हैं तो उनके स्वास्थ्य का स्तर स्वतः ऊंचा हो जाता है। यह अब प्रमाणित भी हो गया है।
सामवेद में कहा गया है कि
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उस्त्रा देव वसूनां कर्तस्य दिव्यवसः।
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उस्त्रा देव वसूनां कर्तस्य दिव्यवसः।
‘‘उषा वह देवता है जिससे रक्षा के तरीके सीखे जा सकते हैं।’’
ते चित्यन्तः पर्वणापर्वणा वयम्।
‘‘हम प्रत्येक पर्व में तेरा चिंत्न करें’’
प्रातः उठने से न केवल विकार दूर होते हैं वरन् जीवन में कर्म करने के प्रति उत्साह भी पैदा होता है। अगर हम आत्ममंथन करें तो पायेंगे कि हमारे अंदर शारीरिक और मानसिक विकारों का सबसे बड़ा कारण ही सूर्योदय के बाद नींद से उठना है। हमारी समस्या यह नही है कि हमें कहीं सही इलाज नहीं मिलता बल्कि सच बात यह है कि अपने अंदर विकारों के आगमन का द्वार हम सुबह देरे से उठकर स्वयं ही खोलते हैं।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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