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Thursday, October 6, 2011

मनुस्मृति से संदेश-सोने का हार वस्त्रों के बाहर पहनना अनुचित (manusmriti se sandesh-sone ka har vastron ke bahar pahanna nindaniya)

          स्वयं को दूसरों के सामने स्वयं को श्रेष्ठ प्रमाणित करना मनुष्य का स्वभाव होता है। अनेक लोग दूसरे मनुष्यों का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिये उच्छृंखलता का व्यवहार करते हैं। कुछ अपनी उद्दंण्डता से स्वयं को शक्तिशाली साबित करना चाहते है। दरअसल इस प्रयास में अनेक लोग ऐसे निंदनीय कार्य करते हैं जिनका आभास ज्ञान न होने के कारण उनको नहीं होता। आमतौर से सोने का हार पहनना स्त्री जाति के लिये एक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा रही है। वह भी उसे अपने वस्त्रों के पीछे छिपाये रहती हैं या उसे ऐसे पहनती हैं कि हार का पूरा भाग दूसरे को नहीं दिखाई दे। अब तो पुरुष जाति में भी सोने की चैन पहनने का रिवाज प्रारंभ हो गया है। तय बात है कि यह सब दिखाने के लिये है और इसलिये जो पुरुष सोने की चैन पहनते है उसे वस्त्रों के बाहर प्रदर्शित करते हैं। मनुस्मृति में इसे निंदनीय कार्य बताया गया है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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न विगृह्य कर्था कुर्याद् बहिर्माल्यं न धारयेत्।
गवां च यानं पृष्ठेन सर्वथैव विगर्हितम्।।
       ‘‘उच्छृ्रंखल पूर्व बातचीत करने, प्रदर्शन के लिये कपड़ो के बाहर सोने की माला पहनना और बैल की पीठ पर सवारी करना निंदनीय कार्य हैं।’’
सर्वे च तिलसम्बद्धं नाद्यादस्तमिते रवी।
न च नग्न शयीतेह च योच्छिष्ट क्वच्तिद्व्रजेत्।
             ‘‘सूर्यास्त होने के बाद तिलयुक्त पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए और न ही नग्न होकर पानी पीना चाहिए। जूठे मुंह यानि बिना कुल्ला किये बाहर भी नहीं जाना चाहिए।’’
          यह तो केवल एक उदाहरण है जबकि हम समाज की दिनचर्या में कई ऐसे तथ्य देख सकते हैं जिसमें लोग आचरणहीनता दर्शाने वाले विषयों को फैशन मानने लगे हैं। बातचीत में अनावश्यक रूप से उग्र भाषा का प्रयोग करना अथवा जोरदार आवाज में बोलकर अपनी बात को सही प्रमाणित करना इसी श्रेणी में आता है। अनेक लोगों की तो यह आदत है वह वार्तालाप के समय हर वाक्य के साथ गाली का प्रयोग करते हैं बिना यह जाने कि इसका उपस्थित श्रोताओं पर विपरीत प्रभाव होता है। मनुस्मृति का अध्ययन करने पर अनेक ऐसे कामों से बचा जा सकता है जिनके दुष्प्रभावों से अवगत न होने पर हम उनको करते हैं।
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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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